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Sunday, December 15, 2019

   बथुआ
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चिनोपोडियम एलबम
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  कभी-कभी किसानों के खेतों में उगने वाली खरपतवार ही किसानों के लिए लाभप्रद साबित हो जाती है जिसे न केवल किसान अपने पशुओं के चारे के रूप में अपितु सब्जी के रूप में भी प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की खरपतवार बाजार में सब्जी के स्थान पर भी अपना स्थान बना लेती है और लोग जीवन भर उसका स्वाद लेते हैं। ऐसी ही एक खरपतवार दक्षिणी हरियाणा में बहुतायत में होती है जिसे बथुआ नाम से जाना जाता है।
  दक्षिण हरियाणा के खेतों में अब बाथू नामक खरपतवार को भोजन के रूप में प्रयोग करने का रिवाज बढ़ता ही जा रहा है। सब्जी के रूप में यह पौधा बेहद पसंद किया जाता है। खेतों में भारी मात्रा में खड़े देखे जा सकते हैं। किसान अपने पशुओं का पेट भरने के अलावा इसे हरी पत्तेदार सब्जी के रूप में पसंद करने लगे हैं।
 खरपतवार के रूप में अपने आप खेतों में उगने वाला 'बाथू ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शाक माना जाता है। कई रूपों में मानव के काम आता है वहीं पशुओं के लिए भी उत्तम हरे चारे का काम करता है। सर्दियों में फसल के साथ अपने आप उगने वाले इस हरे भरे शाक को ग्रामीण परिवेश के लोग बाथू,बथुआ या हरा नाम से पुकारते हैं  जिसे आयुर्वेद में कई गुणों की खान व औषधियों में काम में लाया जाता है।
  बाथू का किसी जमाने में गरीब तबके के लोग ही प्रयोग में लाते थे जो महंगी बाजार की सब्जी खरीदने में असमर्थ थे किंतु आजकल बदलाव आ गया है और अमीर एवं रोगी जनों के लिए रामबाण दवा का काम कर रहा है विशेषकर पेट की बीमारी एवं एनिमिया के शिकार इसे ढूंढते फिरते हैं। किसानों के लिए विशेषकर दक्षिण हरियाणा के किसानों के लिए बाथू एवं खरथू सिरदर्द बन जाते हैं। कीटनाशकों के प्रयोग तथा आधुनिक कृषि के यंत्रों  द्वारा जुताई के चलते बाथू की मात्रा कम होती जा रही है। दिसंबर से जनवरी माह में किसान खेतों में निराई करते हैं और इस शाक को उखाड़ फेंकते हैं क्योंकि यह पैदावार में बाधक बन जाता है। डाक्टर और हकीम इसे खून की कमी वाले व्यक्तियों और रक्त शोधक के रूप में उपयोग करने की सलाह देते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे तथा टहनियां भी हरी होती हैं। इसके पत्तों और टहनियों पर सदा सफेद रंग का पाउडर पाया जाता है जिसके चलते इसे एलबम नाम से जाना जाता है। इसे 'चिनोपोडियम एलबम वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है।
   किसान निराई के वक्त खेतों से उखाड़कर घर लाते हैं और इससे रायता,भाजी तथा देशी तरकारी बनाने के काम में लेते हैं। जायकेदार परांठें भी खाए जाते हैं। बूढ़े-बुजुर्ग बथुआ के रायते को बेहद पसंद करते हैं वही भाजी एवं देशी सब्जियां जायकेदार होती हैं। बाथू को उबालकर इसके निचोड़े हुए पानी को आटा गूंथने में काम में लेते हैं।  इसी जल से स्नान करने से शरीर में चमक भी आती है और बाल कोमल बनाने के रूप में भी प्रयोग करते हैं। कच्चे व पकाकर खाना दोनों ही रूपों में यह लाभकारी माना जाता है। यही कारण है कि शहरों में हाटों पर बिकता है। पेट की कितनी ही बीमारियां इसके नियमित कुछ दिनों तक प्रयोग करने से समाप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि बाथू को ग्रामीण क्षेत्रों का अमूल्य उपहार माना जाता है।
    बाथू जब बड़ा हो जाता है तो उत्तम पशु आहार बन जाता है। इसे चारे के रुप में काम में लेते हैं। ग्रामीण परिवेश में इसे हरा नाम से जाना जाता है। दुधारू पशुओं के लिए बाथू हरे चारे के रूप में काम में लाया जाता है।  बाथू में लोह,विटामिन बी एवं सी,कैरोटीन तथा खनिज लवणों की भारी मात्रा पाई जाती है। यही कारण है कि कुछ रोगों के इलाज में कारगर सिद्ध होता है विशेषकर शरीर के हुकवॉर्म समाप्त करने के काम  आता है। जब बदहजमी का रोग हो जाए तो इसका उपयोग लाभप्रद होता है। बाथू के परांठें एवं रोटियां आजकल अति प्रसिद्ध होती हैं। डाक्टर तथा वैद्य इसे बगैर निचोड़े ही प्रयोग करने की सलाह देते हैं। किसान के खेतों में उगने वाली अनेकों खरपतवारों में बाथू का नाम ही सर्वोपरि होता है जो भोजन का अंग बन चुका है।
    बाथू आजकल किसानों के लिए आय का साधन बनता जा रहा है। इसके गुणों को देखते हुए अमीर जन इसे बाजार से खरीद कर लाते हैं और बड़े ही चाव से खाते हैं जिससे सिद्ध होता है कि बीते जमाने की गरीबों की सब्जी अब अमीरों का भोजन बनती जा रही है। बाजार में किसान इसे उखाड़कर बेच रहे हैं और आमदनी कर रहे हैं।
   सब्जी महंगी होने के कारण किसान वर्ग न केवल खेतों में खरपतवार के रूप में उगने वाले बाथू को सब्जी के रूप में प्रयोग कर रहे हैं वहीं खेतों से उखाड़कर दूसरों को भी खाने की प्रेरणा दे रहे हैं। बाथू गुणकारी औषधि के रूप में जानी जाती है।
उल्लेखनीय है कि बाथू मानव के काम तो आता है वहीं पशुओं के लिए भी उत्तम हरे चारे का काम करता है। सर्दियों में रबी फसल के साथ अपने आप उगने वाले इ
स हरे भरे शाक को ग्रामीण परिवेश के लोग बाथू, बथुआ या हरा नाम से पुकारते हैं जिसे आयुर्वेद में कई गुणों की खान व औषधियों में काम में लाया जाता है।
 किसानों का कहना है कि बाथू का किसी जमाने में गरीब तबके के लोग ही प्रयोग में लाते थे जो महंगी बाजार की सब्जी खरीदने में असमर्थ थे किंतु आजकल बदलाव आ गया है और अमीर एवं रोगी जनों के लिए
रामबाण दवा का काम कर रहा है विशेषकर पेट की बीमारी एवं रक्त की कमी(एनीमिया)के शिकार इसे ढूंढते  फिरते हैं। उनका कहना है कि जब बाजार में अन्य सब्जियों आसमान छू रही है तो ऐसे में बाथू ही गुणकारी सब्जी का काम करेगा। ये किसान स्वयं भी इसे प्रयोग कर रहे हैं और दूसरों को भी इसे खाने की सलाह दे रहे हैं।
 किसानों ने बताया कि वे इसे रायता, देसी सब्जी बनाने में प्रयोग कर रहे हैं वहीं आटे में मिलाकर रोटियां बना रहे हैं वहीं इससे जायकेदार पराठे भी बना रहे हैं। ये व्यंजन उनको बहुत अधिक भा रहे हैं। यही नहीं अपितु वे सरसों का साग व अन्य खेतों में पाई जाने वाली हरी सब्जियां प्रयोग में ला रहे हैं।
  खून की सभी प्रकार की बीमारियों एवं खून की कमी वालों के लिए बाथू गुणकारी है। इसके नियमित रूप से प्रयोग करने से पेट की बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। ऐसे में किसान एवं सभी लोगों को खेतों की इस खरपतवार का उपयोग विभिन्न रूपों में करना चाहिए।
खरपतवार के रूप में अपने आप खेतों में उगने वाला 'बाथू ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शाक माना जाता है
कई रूपों में मानव के काम आता है वहीं पशुओं के लिए भी उत्तम हरे चारे का काम करता है। सर्दियों में फसल के साथ अपने आप उगने वाले इस हरे भरे शाक को ग्रामीण परिवेश के लोग बाथू, बथुआ या हरा नाम से पुकारते हैं  जिसे आयुर्वेद में कई गुणों की खान व औषधियों में काम में लाया जाता है।
  बाथू का किसी जमाने में गरीब तबके के लोग ही प्रयोग में लाते थे जो महंगी बाजार की सब्जी खरीदने में असमर्थ थे किंतु आजकल बदलाव आ गया है और अमीर एवं रोगी जनों के लिए रामबाण दवा का काम कर रहा है विशेषकर पेट की बीमारी एवं एनीमिया के शिकार इसे ढूंढते फिरते हैं। किसानों के लिए विशेषकर दक्षिण हरियाणा के किसानों के लिए बाथू एवं खरथू सिरदर्द बन जाते हैं। कीटनाशकों के प्रयोग तथा आधुनिक कृषि के यंत्रों  द्वारा जुताई के चलते बाथू की मात्रा कम होती जा रही है। दिसंबर से जनवरी माह में किसान खेतों में निराई करते हैं और इस शाक को उखाड़ फेंकते हैं क्योंकि यह पैदावार में बाधक बन जाता है। डाक्टर और हकीम इसे खून की कमी वाले व्यक्तियों और रक्त शोधक के रूप में उपयोग करने की सलाह देते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे तथा टहनियां भी हरी होती हैं। इसके पत्तों और टहनियों पर सदा सफेद रंग का पाउडर पाया जाता है जिसके चलते इसे एलबम नाम से जाना जाता है। इसे 'चिनोपोडियम एलबम वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है।
   किसान निराई के वक्त खेतों से उखाड़कर घर लाते हैं और इससे रायता,भाजी तथा देशी तरकारी बनाने के काम में लेते हैं। जायकेदार परांठे भी खाए जाते हैं। बूढ़े-बुजुर्ग बथुआ के रायते को बेहद पसंद करते हैं वही भाजी एवं देशी सब्जियां जायकेदार होती हैं। बाथू को उबालकर इसके निचोड़े हुए पानी को आटा गुथने में काम में लेते हैं।  इसी जल से स्नान करने से शरीर में चमक भी आती है और बाल कोमल बनाने के रूप में भी प्रयोग करते हैं। कच्चे व पकाकर खाना दोनों ही रूपों में यह लाभकारी माना जाता है। यही कारण है कि शहरों में हाटों पर बिकता है। पेट की कितनी ही बीमारियां इसके नियमित कुछ दिनों तक प्रयोग करने से समाप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि बाथू को ग्रामीण क्षेत्रों का अमूल्य उपहार माना जाता है।
    बाथू जब बड़ा हो जाता है तो उत्तम पशु आहार बन जाता है। इसे चारे के रूप में काम में लेते हैं। ग्रामीण परिवेश में इसे हरा नाम से जाना जाता है। दुधारू पशुओं के लिए बाथू हरे चारे के रूप में काम में लाया जाता है। बाथू में लोह,विटामिन बी एवं सी,कैरोटीन तथा खनिज लवणों की भारी मात्रा पाई जाती है। यही कारण है कि कुछ रोगों के इलाज में कारगर सिद्ध होता है विशेषकर शरीर के हुकवोर्म समाप्त करने के काम  आता है। जब बदहजमी का रोग हो जाए तो इसका उपयोग लाभप्रद होता है। बाथू के परांठे एवं रोटियां आजकल अति प्रसिद्ध होती हैं। डाक्टर तथा वैद्य इसे बगैर निचोड़े ही प्रयोग करने की सलाह देते हैं। किसान के खेतों में उगने वाली अनेकों खरपतवारों में बाथू का नाम ही सर्वोपरि होता है जो भोजन का अंग बन चुका है।
    बाथू आजकल किसानों के लिए आय का साधन बनता जा रहा है। इसके गुणों को देखते हुए अमीर जन इसे बाजार से खरीद कर लाते हैं और बड़े ही चाव से खाते हैं जिससे सिद्ध होता है कि बीते जमाने की गरीबों की सब्जी अब अमीरों का भोजन बनती जा रही है। बाजार में किसान इसे उखाड़कर बेच रहे हैं और आमदनी कर रहे हैं।
 ग्रामीण ही नहीं अपितु शहरी क्षेत्रों में बथुआ को कई रूपों में प्रयोग किया जा रहा है। कुछेक पकवान, सब्जी निम्र बनाए जाते हैं-
परांठे-बथुआ को कच्चा ही काटकर आटे में मिलाकर परांठे बनाकर बड़े चाव से खाए जाते हैं। देसी घी में बनाए गए परांठे बथुआ की भाजी के संग खाने का लुत्फ ही अलग है।
भाजी-बारीक काटकर बथुआ को पहले उबाला जाता है और इसे निचोड़कर भाजी बनाई जाती है। निचोड़ा हुआ
बथुआ जल आटा गुथने के काम आता है।
रायता-बथुआ काटकर, उबालकर, निचोड़कर दही या छाछ में डालकर व उसमें मसाले डालकर बेहतर एवं पौष्टिक रायता बनाया जाता है।

सब्जी-बथुआ को दाल में डालकर, आलू के संग तथा कई अन्य सब्जियों में मिलाकर पकाकर खाया जाता है।
बथुआ के कई अन्य उपयोग भी हैं। रक्त की कमी को झटपट दूर करता है। पालक की भांति इसमें भी पौष्टिक गुण होते हैं। न केवल इंसान के लिए अपितु किसान के पशुओं के लिए भी उत्तम चारा बनता है। जो किसान अपने घर में पालक का प्रयोग नहीं कर पाता है वह बथुआ प्रयोग कर सकता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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