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Friday, December 20, 2019

                                                     










बेर
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 बेर/बेरी नामक फल झाड़ी और पेड़ पर पैदा होते हैं। बेरी पौधे को जिजाइपस मारुशियाना नाम से जाना जाता है।
कच्चे फल दिसंबर माह में बेरी के पौधे पर लगते हैं जो हरे रंग के होते हैं जिनमें मिठास अल्प होता है किंतु पक जाने के बाद ये पीले, लाल तथा विभिन्न रंगों के बन जाते हैं।
   ये गोल तथा लंबे, छोटे तथा बड़े आकार में मिलते हैं। छोटे फल झाड़ीवाले/झड़ बेर कहते हैं जो कभी कभी बहुत छोटे आकार के होते। ये झाड़ी पर लगते हैं किंतु ये मधुर बहुत होते हैं। गोल तथा मध्यम आकार के बेर अक्सर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाए जाते हैं। ये भी कई रंगों के तथा मधुरता अलग अलग पाई जाती है। बागों वाले बेर विशेष प्रकार के, बड़े आकार के होते हैं जिनका रंग अक्सर हरा ही रहता है किंतु इनमें मिठास कम होता है।
 बेर गरीबों के सेब नाम से जाने जाते हैं।
दक्षिण हरियाणा, राजस्थान जैसे क्षेत्रों में जहां पानी की कमी है होती है सूखा एरिया होता हैवहां पर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। जहां बेरी के बड़े-बड़े कांटे पाए जाते हैं वहीं यह बेर दूर से मन को लुभाते हैं। जब पककर पीले या लाल हो जाते हैं तो बड़े चाव से इन्हें खाते हैं।
कुछ गरीब जन बेरों को बाजारों में बेचते हैं तथा इन्हीं से अपनी रोटी रोजी कमाते हैं किंतु जब ये बेर सूखकर पेड़ से गिर जाते हैं तो इनको छुहारा नाम से जाना जाता है।
गर्मियों के समय में बेरी के पौधे शुष्क अवस्था में नजर आते हैं। इस वक्त पत्तियां झड़ जाती है किंतु शीत ऋतु में फलों से लद जाते हैं। जनवरी से मार्च महीने तक भारी मात्रा में फल लगते हैं। जहां यह बेरी के फल अधिक ठंड को नहीं सहन कर सकते। अक्सर ये बलुआ मिट्टी में जिसमें जीवांश खाद पाया जाता हैं अधिक उगते हैं। देसी खाद इनके लिए ज्यादा बेहतर होता है।
 बेर की 300 से अधिक किस्में तैयार की जा चुकी है तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में मिलता हैं। बेर की अक्सर झाड़ी होती है वही बेर के बड़े पेड़ भी बन जाते हैं। बेर के भारी मात्रा में फूल लगते हैं जो पीले या सफेद रंग के होते हैं।
बेर पकने पर खाए जाते हैं वही अचार और जैम जैसे पदार्थों में भी डाले जाते हैं। इनमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन-सी पाई जाती है।
 भारत में पके हुए फल बिना भूने व तले वाले ही खाए जाते हैं। इनके फलों को जहां सुखाकर कैंडी बनाकर,अचार, जूस आदि बनाकर भी प्रयोग में लाया जाता है। बेरी के पत्ते जहां पशुओं के चारे की विशेषकर बकरी और भेड़ के चारे के लिए काम में लाए जाते हैं। इनके फूलों पर मधुमक्खियों बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती जो अपना शहद इक करती है।
 बेरी की लकड़ी कठोर तथा अंदर से लाल रंग की होती है जो बहु उपयोगी होती है। जलाने के भी यह काम में लाई जाती है। इनके फल फोड़ा फुंसी या फिर शरीर में लगे कट घाव पर भी काम में लाए जाते हैं। यहां तक कि बुखार के समय भी ये लाभप्रद होत हैं। बदहजमी के समय नमक, काली मिर्च आदि मिलाकर खिलाया जाता है।
इसकी जड़ों से जहां घाव भरने के लिए छिड़का जाता है।

इनकी जड़ों के छिलके से निकाला गया जूस अर्थराइटिस के काम आता है। यहां तक कि इसके छिलके का सांद्र जूस जहरीला होता है के फूलों से जहां मधुमक्खियां शहद बनाती हैं। सूखे से बचाने के लिए इस पौधे का उपयोग किया जाता है।
बेर एक मौसमी फल है जिसमें उर्जा बहुत कम पाई जाती है तथा विटामिन और खनिज लवण पाए जाते हैं। इसमें पोषक तत्व, एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है। रसीले बेर जहां कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में मददगार साबित होते हैं वही वही वजन कम करने के लिए बेर अच्छा खाद्य पदार्थ है। बेर में पर्याप्त विटामिन सी और पोटैशियम तत्व पाया जाता है जो प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ावा देता है। कब्ज की समस्या को
बेर से दूर किया जा सकता है। इसमें कैल्शियम फास्फोरस मिलता जो हड्डियों और दांतों के लिए बहुत कारगर होता है। बेर में जहां कैंसर से लडऩे की क्षमता पाई जाती है।
बेरी के फल जहां मधुमेह रोग में भी को रोकने में भी कारगर होते हैं वही तनाव को रोकते हैं। उच्च रक्तचाप में, कैंसर में भी लाभप्रद है वही दमा बुखार, जलन, तनाव, उच्च रक्तचाप आदि में भी बहुत कारगर बताए गए हैं।
बेरी के फल घाव को भरने, सूखी त्वचा का उपचार,  बुढ़ापे आदि को रोकने के काम में लाया जाता है वही लिवर को स्वस्थ रखते हैं। भूख को बढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त कई लाभकारी प्रभाव शरीर में देखे जा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे इसे बेहद चाव से खाते हैं।

** होशियार सिंह, लेखक, कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा

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