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Sunday, December 29, 2019







कनेर
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 पीले फूलों की कनेर
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थवेटिया पेरूवियाना
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कसकेबेला परपूरिया
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पीले फूल वाली कनेर को बी स्टील ट्री या जायलो ओलिएंडर नाम से जाना जाता है। वास्तव में इसका वैज्ञानिक नाम थवेटिया पेरूवियाना है।  यह मध्यम ऊंचाई वाली एक झाड़ी से लेकर मध्यम ऊंचाई के एक वृक्ष के रूप में मिलता है जिस पर पीले फूल लगते हैं। इस पौधे की पत्तियां लंबी और पतली होती है।
 कनेर कई रंगों में मिलता है लेकिन पीला कनेर प्रमुख है। पीली कनेर का दूध शरीर की जलन को नष्ट करने
वाला और विषैला होता है। इसकी छाल कड़वी तथा बुखार रोधी होती है। छाल की क्रिया भी तेज होती इसलिए से कम मात्रा में लोग सेवन करते देखे गए हैं। यदि अधिक मात्रा प्रयोग कर ली जाए तो दस्त लग जाता है।
 कनेर का मुख्य जहरीला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर पड़ता है फिर भी से विभिन्न औषधियों का मिलाया जाता है। कनेर का बीज जहरीला होता है जिसका सेवन करना जान के लिए जोखिम भरा होता है। कनेर का जहर ड्रग की तरह होता है जो दिल की धड़कन को कम कर देता है। धड़कन धीरे-धीरे कम होती होती चली जाती है और आखिरकार रुक जाती है। अभी तक इस पर शोध कार्य चल रहा है वैज्ञानिक इसके विभिन्न परिणाम खोज रहे हैं।
 कनेर एक झाड़ी या छोटे वृक्ष के रूप में मिलता है जिसके पीले, लाल तथा कई रंग के फूल आते हैं। जिसे कसकेबेला परपूरिया नाम से वैज्ञानिक भाषा में जाना जाता है। भारत में इसे कनेर नाम से जाना जाता है जो गर्मी को सहन कर सकता है। यह भारत के विभिन्न राज्यों में पाया जाता है।
 इसके फूल पीले होने के कारण जहां देवी देवताओं को अर्पित किए जाते हैं, विशेषकर शिव भोले की पूजा अर्चना में काम आते हैं। इस पौधे के सभी भाग जहरीले होते हैं। दक्षिण भारत में इस पौधे के बीजों को खाकर आत्महत्या करने के मामले भी पाए गए हैं। यह एक सजावटी पौधा है जिसके बड़े फूल आते हैं।
 यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी और विषम मौसम को भी सहन कर सकता है। कीड़ों को रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है वही पेंट फंगस को दूर करने,जीवाणुनाशी,दीमक नाशी गुण भी पाए जाते हैं।
इस पौधे को कसकेबेला नाम से जाना जाता है। इसे स्पेन की भाषा में रैटलस्नेक कहते हैं क्योंकि रैटलस्नेक का जहर बिल्कुल वैसे ही कार्य करता है जैसे इस पौधे का जहर कार्य करता है। इन हालातों में भी यह औषधीय
पौधा है जो सफेद दाग, गुप्त रोग, बवासीर, पथरी, पीठ दर्द, बदन दर्द, सिर दर्द, नेत्र रोग, लकवा, दातुन करने, नेत्र रोग दूर करने, चेहरे की सुंदरता बढ़ाने, चर्म रोगों में, दाद, घाव जोड़ों की पीड़ा, संक्रामक रोग, कुष्ठ रोग, खुजली पेट के कीड़े, अफीम का नशा, बिच्छू का विष घटाने के काम आता है वहीं इसका जहर हृदय रोग, मूत्र विकार, सुजाक आदि बीमारियों में काम में लाया जाता है। सिर दर्द में भी इसके फूल कारगर बताए जाते हैं।
 शीघ्रपतन रोकने के लिए, दांत पीड़ा तथा शुक्र बढ़ाने के लिए भी काम में लाया जाता है।
कनेर के कई रूप मिलते हैं। सफेद कनेर घाव, बवासीर, वात रोग नष्ट करता है और नेत्रों की ज्योति बढ़ाता है। कृमि, कुष्ठ रोग को दूर करने वाला, घोड़ों के प्राण हरने वाला होता है। सभी प्रकार के कनेर जहरीले होते हैं। कनेर का तेल भी निकाला जाता है जो खुजली में काम आता है।          

पीली कनेर थोड़ी मात्रा में ह़दय को बल देने वाला होता है। अधिक मात्रा में इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। इस पौधे में थवेटीन का पदार्थ पाया जाता है इसलिए इस पौधे को थवेटिया भी कहते हैं। यह पाचन क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं डालता किंतु गर्भाशय, मूत्राशय पर सीधा प्रभाव डालता है।          
कनेर विषैला है वही इसका लाभ भी है तथा विभिन्न दवाओं में काम में लाया जाता है। कनेर का पौधा सड़क के किनारे जंगलों में इधर-उधर खड़ा मिल सकता है। कनेर लंबे समय तक विषम परिस्थितियों को सहन कर सकता है। जहरीला पौधा होते हुए भी यह बहुगुणी पौधा माना जाता है। इस पर लाल, पीले, गुलाबी कई रंगों के फूल आते हैं।
पीले कनेर को जहां बुखार, रक्त विकार में काम में लाया जाता है। घाव आदि को भरने के लिए भी काम में लाया जाता है। पीला कनेर दांतो के दर्द, हृदय के दर्द को दूर करने के काम में लाया जाता है वहीं जोड़ों के दर्द में भी लाभप्रद है। कुष्ठ रोग, चेहरे की कांति बढ़ाने के लिए, कीड़े मकोड़ों के काटने पर इसका उपयोग किया जाता है। लकवा लग जाए तो भी इसका उपयोग किया जाता है। सांप के काटने पर भी पीला कनेर बेहतर बताया जाता है। पीले कनेर के जड़, पत्ती, दूध और छाल सभी लाभकारी एवं विषैले हैं। पीला कनेर जहां लाभ पहुंचाता है वहां यह हानियां भी करता है। इसके हानियों में डिप्रेशन ,बेचैनी, उल्टी, पेट दर्द, एनीमिया, दस्त लग जाते हैं। इसलिए बगैर डॉक्टर और वैद्य की सलाह के कनेर उपयोग में नहीं लाना चाहिए।


                                             कनेर
वन उपवन को झांको
रंग बिरंगे खिले फूल
कुछ इनमें जहरीले हैं
छूने की मत करो भूल,

                              निरियम नाम का पौधा
                              जहरीली होती आकृति
                              कई रंगों के फूल खिले
                              लंबी चौड़ी होती प्रकृति,

300 बीसी का इतिहास
रामायण में आता वर्णन
रावण ने पहनी थी माल
खो दिया था अपना मन,

                                  ओलियंडर है स्पीशिज
                                  जीवों को दे मौत उतार
                                  यहां वहां खड़ा मिलेगा
                                 मत तोड़कर देना उधार,

त्वक रोगों में काम आए
कोढ़ी लगाते इसका लेप
पत्तों में ग्लाइकोलाइड्स
तेल का इसका करे लेप,

                                   हरिण जीव पास न आते
                                   कीटों का कर दे विनाश
                                  प्रत्येक भाग है जहरीला
                                  कभी न रखना इसे पास,

सफेद, पीला व गुलाबी
कई रंगों में देता चमक
बागों में बढ़ाता है शोभा
कभी न इसे लेना चख,

                               कई देशों में मिलता है
                              ओलाइव से मिले रूप
                              दूर से आकर्षित करता
                             सहता रहता सर्दी धूप।

*****होशियार सिंह, लेखक, कनीना*****
 
** होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा***

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