मकड़ा घास
(डक्टिलोक्टेनियम इजप्सियन)
अफ्रीका इसकी जन्मस्थली
दलदली जगह पर मिलती है
मकड़ा घास कहलाती है यह
किसान के खेतों में खिलती है,
पशुचारे का उत्तम स्रोत कहाए
बहते हुए जल पर विराम देती
विभिन्न फसलों में पैदा होती है
खरपतवार यह घास कहलाए,
सीड हैड की शक्ल क्रो पैर सी
इसलिए यह यह क्रो फुट कहाए
बीज इसके गोरे रंग के होते सदा
रोटी और हलवा इनसे भी बनाए,
मकड़ा घास अकाल में काम आए
दस्त लगे तो इसका करो उपयोग
घाव एवं फोड़े में मकड़ा काम आए
प्रयोग कर लो गुर्दे के दर्द का रोग,
शोध चल रहे हैं इस पर अभी भी
गले व फेफड़े के कैंसर को करे कम
दर्द निवारक मकड़ा घास कहलाती
मूत्र विकारों को कर देती है यह कम,
पशुचारे का विकल्प बेहतर होता है
सूखाकर इसको रखते घरों में किसान
सूखा चारा एवं हरा चारा दोनों रूप
दूध बढ़ाने में मकड़े की बड़ी ही शान,
फैलती जा रही विभिन्न देशों में यह
अनोखी शान निराली मकड़ा घास की
भारत में दबदबा बन गया है इसी का
बनती दवाइयां इस अनोखी घास की।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना**
No comments:
Post a Comment