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Tuesday, March 22, 2022

    सत्यानाशी

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दिल्ली में मारे थे 60 लोग

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भड़भाड़

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कटेली

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आर्जिमोन मेक्सिकाना

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सत्यानाशी का नाम लेने के बाद स्पष्ट हो जाता है कि यह पौधा विनाश का कारक बन सकता है। सत्यानाशी को ग्रामीण लोग कटेली, भड़भाड़ तथा झलझाई आदि नामों से जानते हें। यह पौधा अति डरावना होता है जिसे आर्जिमोन मक्सिकाना नाम से जाना जाता है।
आर्जीमोन जिसने 1998 में दिल्ली में  ड्रॉप्सी नामक रोग फैलाया था जिसमें 60 लोग मारे गये थे तथा 3000 बीमार पड़ गये थे जिन्हें दवा आदि देकर लंबे समय के बाद ही राहत मिली थी। सत्यानाशी नाम से जाना जाने वाला यह एक विषैला पौधा होता हे। ग्रामीण क्षेत्रों में घ्मोई/कटेली/स्वर्णक्षीरी आदि नामों से जाना जाता है। यह भारत का पौधा नहीं अपितु मेक्सिको, अमेरिका का मूल है। मेक्सिको में सबसे पहले मिलने के कािरण इसे आज भी मैक्सिकाना नाम से जानते हैं। किंतु धीरे-धीरे यह सभी देशों में  विभिन्न स्थानों पर फैल गया है।
 वास्तव में यही पौधा है इसने दिल्ली में 1998 में ड्रॉप्सी रोग फैलाया था जिसमें 60 लोगों की मौत हो गई थी और तीन हजार के करीब बीमार रहे थे। सत्यानाशी नाम से अभिप्राय है जो हर प्रकार से घातक साबित हो सकता है। इसको देख कर ही इंसान को डर लगता है किंतु इसके फूल बहुत सुंदर लगते हैं। सोने जैसे पीले रंग के किंतु इसमें सोने जैसा ही दूध निकलता है। इसलिए इसको स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं। सत्यानाशी के पत्ते लंबे तथा कांटों से भरमार होती है वही फूलों के साथ भी कांटे होते हैं किंतु इसके फल कांटेदार होने के साथ-साथ चौकोर जैसे होते हैं जिसमें अनेकों काले रंग के बीच पाए जाते हैं। इसके बीजों को यदि जलते हुए कोयले पर डाल दिया जाए तो एक विशेष प्रकार की आवाज करते हुए जलते हैं। यह आवाज भड़भड़ करती है इसलिए इसको भड़भाड़ भी कहते हैं। इसके भी जहरीले होने के कारण तथा सरसोंसे मिलते जुलते होने के कारण 1998 में सरसों तथा विभिन्न प्रकार के तैलिये बीजों में मिला दिए इसके कारण रोग फैल गया। ड्रॉप्सी के कारण लोग मारे गये थे। इस तेल को प्रयोग करने से पेट की झिल्ली में पानी भरने लग जाता है एपिडेमिक ड्रॉप्सी नाम से जाना जाता है। यह व्यक्तियों के लिए जानलेवा साबित हुआ। बाद में पता चला कि किसी ने गलती से सरसों एवं सूरजमुखी आदि बीजों में सत्यानाशी के बीज मिला दिये थे।  तत्पश्चात पूर्ण जांच करके ही तेल की बिक्री  शुरू हुई थी। यद्यपि यह डरावना पौधा है परंतु औषधीय है। यह पौधा त्वचा पर घाव आदि को भरने के लिए काम में लाया जाता है। पौधे के दूध में विषाणुनाशी गुण होता है इसकी विशेषता है कि पुराने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है। कुष्ठ रोग भी दूर करने की क्षमता पाई जाती है।  दाद, खाज खुजली आदि विभिन्न प्रकार के रोगों में काम में लाया जाता है वही बांझपन को दूर करने के लिए भी इस  पौधे में गुण पाया जाता है।
 वास्तव में इस पौधे में ऐसा कौन सा पदार्थ है जो  विषैला बनाता है? इस पौधे के बीजों में करीब 35 प्रतिशत पीले रंग का अखाद्य तेल पाया जाता है जिसमें एल्कलाइड पाए जाते हैं। अनेकों विषैले योगिक को होते हैं। ये यौगिक जानलेवा साबित होते हैं। इसे गुर्दे के रोग दूर करने के लिए दवाएं बनाई जाती है,
पीलिया रोग दूर करने के लिए भी काम में लाया जाता है। ऐसे में यह वही पौधा है जो देखने में बहुत डरावना है किंतु शरीर के लिए घातक भी है। गांव में लोग कंटेली भी कहते हैं चूंकि पूरे शरीर पर कांटे पाए जाते हैं। इसके फूल पोस्त जैसे सुंदर होते हें किंतु इस पौधे को खाने वाला कोई भी जीव नहीं मिलता। शरीर पर कांटे होने के कारण तथा विषैला होने का कारण कोई जीव नहीं खाता। यह पौधा हर स्थान पर मिलता है तथा इतने अधिक संख्या में मिलते कि दूर तक पीले फूल नजर आते हैं। पुरानी इमारतों के आसपास, रोड, तालाब, गंदगी आदि स्थानों पर भी ये पौधे खड़े मिल सकते हैं। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि पीले रंग का दूध निकलता है जो सोने जैसा नजर आता है। यह पौधा एक खरपतवार है तथा 5 फुट तक बढ़ जाता है। वास्तव में यह पोस्त के फूल जैसा इसका फूल होता है जिसकी प्रजाति मेक्सिको में पोपी की प्रजाति से मिलती जुलती होती है। इसलिए इसे मैक्सिकन पोपी नाम भी दिया जाता है। दिल्ली में जो मिलावट की गई थी उस तेल में महज 1 फीसदी थी। आर्जिमोन का तेल जो सूरजमुखी, सरसों तथा अन्य तेलों में गलती से मिल गया था जिसने भारी समस्या खड़ी कर दी थी। आज तक भी उस दिन को















लोग नहीं भूले हैं। आर्जीमोन सत्यानाशी हर जगह हर गांव में धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। उसके बीच और सरसों के बीजों में अंतर होता है। सरसों के बीज बाहर से खुरदरे नहीं होते जबकि इसके बीच गहरे काले रंग के तथा खुरदरे होते हैं।

 

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