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Monday, March 21, 2022

झड़बेरी
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जंगली बेरी
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जिजिफस नुमुलेरिया
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झड़बेरी को जंगली बेर भी कहा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़बेर भी कहा जाता है।  इसे महज झाड़ी तक भी कहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में सिर चढ़कर बोलता है जिस का वैज्ञानिक नाम जिजिफस नुमुलेरिया है। वास्तव में यह एक झाड़ी के रूप में पाया जाता है जो रेगिस्तानी क्षेत्रों में विशेषकर भारत के पश्चिमी भागों, पाकिस्तान अफगानिस्तान आदि में पाया जाता है।
यह पौधा 5 मीटर के करीब बढ़ता है। उनकी अनेकों शाखाएं चलती है तथा भारी मात्रा में कांटे होते हैं। कांटे भी
तीखे होते हैं जो पत्ते के साथ पाए जाते हैं।  पत्ते लगभग गोल होते हैं। वास्तव में बेरी  जिसे जीजिूफस जूजूबा नाम से जाना जाता है। वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में इस पौधे के झाड़ी कहते हैं तथा वास्तव में फल को बेरी कहते हैं।
बेरी का मतलब है और रसीले फल। ये फल इस पर लगते हैं जो प्राय हरे रंग के होते हैं। तत्पश्चात पीले और बाद में ग
हरे लाल रंग के होते हैं। ये आकार में छोटे होने के कारण जंगली बेरी नाम से जाना जाता है। वास्तव में सड़क के किनारे बंजर पड़ी हुई भूमि में भी पाए जाते हैं।  वैसे तो बेर के तीन रूप होते हैं जिनमें बड़े आकार के जिसे बागोंवाला, मध्यम आकार के जिन्हें  पचेरी बेर कहा जाता तथा छोटे आकार के बेर झाड़ी बेर कहते हैं। ग्रामीण लोग बड़े ही चाव से बेर खाते हैं। यह पौधा अक्सर पर्पल रंग का होता है इसकी जड़े कुछ लाल रंग की तथा गहराई तक जाती है। पत्ते प्राय गोल आकार के होते हैं तथा पत्ते गहरे हरे रंग के मिलते हैं। इन पत्तों को पाला कहा जाता है।
 झड़बेरी पर तीखे कांटे होते हैं उनके छोटे-छोटे पीले फूल ल
गते हैं जिनमें नर तथा मादा दोनों भाग पाए जाते हैं। तत्पश्चात उनके फल लगते हैं। अक्सर बेर सर्दियों में दिखाई देते हैं तथा गर्मी आने पर पक कर तैयार हो जाते हैंञ
 झाड़ी बहुत प्रसिद्ध पौधा है वास्तव में  पुराने समय से बुजुर्ग खेतों से इसे काट कर इकट्ठा करके चिंदी बनाते थे जिसको पशुओं के लिए लाकर सुखाया जाता था। चिंदी को सूखा कर पत्तों से सूखा चारा बनाया जाता है। वहीं बाड़ अपने बाड़ों की सुरक्षा के काम में लाई जाती हैं। अब न तो झड़बेरी के पौधे अधिक संख्या में देखने को मिल रहे हैं। इनके हरे पत्तों को बकरी भेड़तथा अन्य कुछ जी बड़े ही चाव से खाते हैं।
यह पौधा अनेकों रूप में काम में लाया जाता है वह इसके फल बेरी के नाम बेर के नाम से जाने जाते हैं जिन्हें सूखाकर अक्षर छुहारा नाम से जाना जाता है। जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते हैं। वास्तव में इसके पत्ते सूखे तथा हरे चारे के रूप में काम में लाये जाते हैं। इसी प्रकार फल भी इसके मधुर जिनमें अमल होता है। पक जाने पर खाने योग्य होते हैं जो सुखाकर तथा मिठाई बनाकर खाए जाते हैं। अनेकों कीट, गिलहरी चूहा आदि फलों की ओर आकर्षित होते हैं किंतु उनके फल आसानी से तोडऩा कठिन है क्योंकि कांटे सुरक्षा के लिए पाए जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के लोग का विषय इनकी जड़ों से को गर्म पानी में उबालकर ठंडा करके फोड़े फुंसी चर्म रोग में काम में लेते आए हैं। वहीं विभिन्न प्रकार की बीमारियों में भी यह कारगर पाई जाती है।
 बेरी का पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बाड़ के काम में लाया जाता है वही अनेकों प्रकार के पशु चारे के रूप में बेहतर चारा प्
रदान करता है। इसे व्हिट एंड अर्न नाम से भी जाना जाता है।
 इस पौधे पर फल मार्च से जून के बीच भारी मात्रा में लगते हैं परंतु यह ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है क्योंकि बेर का आकार छोटा होता है ।यह पौधा अनेकों औषधियों के रूप में भी प्रयोग करते हैं।
 इस पौधे के पत्ते सर्दी के समय अपची,मसूड़ों में सूजन तथा टोनिक के रूप में काम में लाया जाता है। बेर पूरे विश्व में खाये जाते हैं। लोग इसे सुखाकर फलों को सुखाकर प्रयोग करते हैं।  पत्तों को गांव में लोग पाला नाम से जानते हैं जो पशुओं के लिए बहुत उपयोगी तथा सुखा और हरा चारा बनाते हैं।
इसके पत्तों से रस निकाला जाता है जो जैविक गतिविधियों में काम में लाया जाता है ।पौधे में 53 विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं जो विभिन्न उद्देश्य के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

 झड़बेरी के फल सूक्ष्म जीवों का विनाश करने, एंटी ऑक्सीडेंट आदि के उद्देश्य के लिए काम में लाए जाते हैं। कुल मिलाकर के ग्रामीण क्षेत्रों का बेहतरीन पौधा होता था किंतु किसानों ने हल चलाकर तथा आधुनिक कृषि पद्धति के चलते इसे समाप्त कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह बाड़ के रूप में देखने को मिलते थे जहां इस पौधे की बाड़ लगाई जाती थी और  पशु पालते थे। अब न तो झड़बेरी मिलती और न वो पशु बाड़े जहां बाड़ लगाई जाती है।











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