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Thursday, March 17, 2022

 होली पर बचे रासायनिक रंगों से, पानी को बचाने की शपथ ले
-अनेक बीमारियों की जड़ है रासायनिक रंग
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18 मार्च को होली का पर्व मनाया जा रहा है। इसके विषय में कहा गया है कि -
अच्छी के बुरे होते हैं,मिट जाते हैं वंश,
 हिरणकश्यप के प्रहलाद हुए, हुए उग्रसेन के कंस।

 अर्थात कई बार किसी अच्छे परिवार में बुरे व्यक्ति ही पैदा हो जाते हैं जो वंश का विनाशक साबित होते हैं तथा इसके विपरीत कुछ बुरे परिवारों में भी बहुत अच्छे व्यक्ति पैदा होते हैं जो परिवार का नाम रोशन कर देते हैं।
  हिरणकश्यप एक राक्षस योनि का व्यक्ति था जिसके कुल में भक्त प्रहलाद जिनकी याद में यह होली का पर्व मनाया जाता ।है सच्चाई यह है कि भक्त प्रहलाद विष्णु के अनन्य भक्त थे और विष्णु को पूजने वाले थे जबकि लोग हिरणकश्यप को पूजते आ रहे थे। यही कारण है कि हिरणकश्यप उन्हें दिन रात मारने की कोशिश में लगे रहते थे परंतु प्रभु की कृपा से हर बार बच जाते थे। चाहे उनको पहाड़ों से गिराया, समुद्रों में गिराया, गरम तेल में डाला किंतु हर बार बच निकले यहां तक कि कालकूट भी पिलाया गया जिससे भी वह बच गए।
 आखिरकार कैसे इस भक्त प्रहलाद को मारा जाए ,हिरणकश्यप को उसकी बहन ने कहा कि मेरे पास एक ऐसा अंग वस्त्र है जिसको और ओढ़ आग में बैठ सकती है और आग उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। उन्होंने हिरणकश्यप  को बताया कि वह गोदी में प्रहलाद भक्त को लेकर आग में बैठ जाएगी और ईंधन डालकर आग लगा दी जाये तो प्रहलाद भक्त भक्त भस्म हो जाएगा। इस वक्त बहुत विरोध भी हुआ किंतु हिरणकश्यप  कब मानने वाले थे। उन्होंने वैसा ही किया। होलिका अपना कपड़ा ओढ़ कर प्रहलाद भक्त को गोदी में लेकर बैठ गई। उनके ऊपर र्इंधन वगैराह डाल दिए गए थे। यहां तक कि लोगों के अस्त्र शस्त्र भी आग में डाल दिये गये और उसमें आग लगा दी। आग से कुछ लोगों ने उनको बचाना भी चाहा किंतु एक शक्तिशाली राक्षस राजा के सामने किसी की पार नहीं पड़ी।
 आग इतनी तेजी से फैली सब कुछ तबाह हो गया किंतु जब ढूंढा गया तो होलिका जल चुकी थी और भक्त प्रहलाद का दुपट्टा उनके सिर पर आने  से वे बच गए थे। इसी खुशी में लोगों ने रंग गुलाल से होली खेली। वास्तव में उस जमाने में विभिन्न प्रकार के हथियार लेकर जो जो व्यक्ति मौके पर पहुंचे तो सभी हथियार भी होलिका दहन में डाल दिए थे। यही कारण है कि आज भी ढाल एवं बिड़कले अस्त्र शस्त्रों के रूप में बनाए जाते हैं जो होलिका दहन में डाले जाते हैं। होलिका के जलने के बाद लोगों में खुशी का माहौल था और वे खुशी से रंग गुलाल से होली खेलने लगे।
उस जमाने में जहां रंग गुलाल प्राकृतिक होता था। वे एक दूसरे से गले मिले, एकता और भाईचारे की मिसाल दी किंतु इस रंग गुलाल के पर्व को कुछ लोगों ने कुरूप बना दिया है। कुछ लोगों ने उठा उठा कर किसी व्यक्ति को कीचड़ में डालना शुरू कर दिया क्योंकि रंग के पैसे लगते हैं इसलिए उनको कीचड़ ही रंग नजर आने लगा। गंडासे या ट्रांसफार्मर का तेल या रासायनिक रंग मुंह में ठूंस दिए जाते हें या मुंह पर कालिख पोत कर मुंह काला कर दिया जाता है। न जाने कितने रूपों में होली का नजारा देखने को मिला। धीरे-धीरे सभ्य लोग होली से तौबा करने लगे और होली से कुछ दूर जाने लगे। जाए भी क्यों ना, यह दुश्मनी साधने का त्योहार बन गया जबकि यह त्योहार भाईचारे और एकता का होता है। वास्तव में होलिका दहन के बाद सम्मत भी देखा जाता है। घडों में पानी से भर कर जमीन के नीचे रखे जाते हैं, उन्हें खोदकर निकाला जाता है यदि उनमें पानी बच गया तो अच्छी पैदावार होगी अगर वह सूख गए तो पैदावार हल्की होगी। यहां तक कि लोग होली की पूजा करते हैं वही लोग हैं जो भक्त प्रहलाद के पुजारी थे। वास्तव में समय बदला लोगों ने होलिका को कुरूप बना दिया। आज एक दूसरे को कष्ट देने पर तुले हुए हैं। चलती हुई बाइक वाले पर गुलाल फेंकने से कितनी ही दुर्घटनाएं हो जाती है। कितने ही लोगों पर फोड़े फुंसी हो जाते हैं। त्वचा खराब हो जाती है, कई दिनों तक रंग नहीं उतरता, आंखों में रंग चला जाता है, मुंह में जहरीला रंग चला जाता है। सांस द्वारा फेफड़ों में भी जहरीला रंग चला जाता है और लोग इस पर्व को खुशी का पर बताने लगे परंतु समय के साथ-साथ लोग सचेत होने लगे। जिन रासायनिक रंगों का उपयोग जमकर करते हैं। उनमें पाया गया कि कितने ही रंग नुकसान पैदा करते हैं। चेहरे की त्वचा काफी कोमल हो जाती है, उसे नुकसान पहुंचा देते हैं। आंखों के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि आंखों की रोशनी चली जाती है।
 न जाने कितने ही लोग हैं जो होली के दिन कपड़ों पर रासायनिक रंग डालकर कपड़े खराब कर देते हैं जो परेशानी का कारण बनते हैं। अनेकों रोग त्वचा पर हो जाते हैं आंखों में सूजन आ जाती है। विभिन्न प्रकार की दवाई डालकर आंखों की सुरक्षा करनी चाहिए। आखिर ऐसी होली का क्या फायदा जो इंसान को नुकसान पहुंचाए।
 ऐसे में होली के प्रति लोग जागरूक कहो गये। अब होली के पर्व पर किसी प्रकार का  रासायनिक रंग प्रयोग नहीं करते अपितु महज घटिया मानसिकता वाले लोग रासायनिक रंग डालते हैं। यदि रासायनिक रंग प्रयोग करते हैं तो होली से तौबा कर लेनी चाहिए। प्राकृतिक रंगों एवं गुलाल से सी होली खेलनी चाहिए क्योंकि रासायनिक रंगों में शीशा पाया जाता है आंखों को हर प्रकार से नुकसान पहुंचते हैं। इससे बचने का प्रयास करना चाहिए। फूलों एवं पत्तों से रंग बनाकर होली खेलनी चाहिए।
 रासायनिक रंगों में जहरीली धातुएं पाई जाती हैं।
होली खेलने से पहले नारियल का तेल या सरसों का तेल प्रयोग करना चाहिए यहां तक की लोशन का प्रयोग करें तो रासायनिक रंग नुकसान कम पहुंचाएंगे। वरना यह रंग तक कई दिनों तक नहीं छूटेंगे।
 इन रंगों से बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय है गुलाल से होली खेले, गले मिलकर होली खेले, हो सके तो फूलों और पौधों से प्राप्त रंग, इको फ्रेंडली होली खेले जो शरीर के लिए घातक साबित नहीं होंगी। यहां तक  त्वचा की इन रंगों से सुरक्षा करें। आंखों, नाक, कान एवं मुंह में रासायनिक रंग डालने से बचे। वैसे तो गुलाल में भी बजरी रोती है जो नुकसान पहुंचाती है। रासायनिक रंगों से फुंसी, खुजली, एलर्जी हो जाती है। आंखों की सुरक्षा करनी चाहिए, अक्षर कीचड़ फेंकते हैं, ग्रीस तथा गुब्बारे में रंग भर के फेंकते हैं जो बहुत अधिक नुकसानदायक है।
आंखों में रासायनिक रंग लग जाये तो बार-बार साफ पानी से धोए, एंटीबायोटिक प्रयोग करें और विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए वरना आंखों की रोशनी जा सकती है। शरीर के अंगों को रंगो से बचाए प्राकृतिक रंगों से होली खेले। अगर होली खेलते है तो चश्मा भी प्रयोग करें ताकि आंखों को नुकसान न हो।
होली खलने वाले को बता देना चाहिए कि वो होली खेलेंगे परंतु रासायनिक रंगों से नहीं। रासायनिक रंगों से बचने की कोशिश करें। अक्सर देखा दीवारों, कपड़ों तथा अन्य महंगी वस्तु  बदरंग
कर देते हैं। रासायनिक रंग होली के रंग नहीं अपितु दुश्मनी के रंग साबित होंगे।
जहां होली के दिन सुगंधित मलय बहनी चाहिए वहां घटिया रंग फेंके जाते हैं जो बहुत घातक साबित होते हैं। त्वचा विशेषज्ञ बताते हैं कि बाजार में जो रंग मिलते हैं उनमें शीशा, माइका,चूना, मिट्टी आदि मिले होते हैं। नीले रंग अधिक नुकसानदायक होते हैं जो खुजली एग्जिमा, जलन, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। यही वजह है लोशन आदि लगा लेना चाहिए। साबुन से चेहरे को साफ नहीं करें क्योंकि साबुन क्षारीय होने से त्वचा को रूखा बना सकते हैं इसकी बजाय रंग छुड़ाने के लिए क्रीम, लोशन आदि प्रयोग कर।ें होली खेलते समय आंखों की रक्षा करनी चाहिए, मुंह में रंग न डाले। ऐसा जरूर सोचना चाहिए कि बाजार में जितने भी रंग आए हुए हैं वे घातक हैं। लोग रासायनिक रंगों की वजह घर में भी छुपकर बैठ जाते हैं। उल्टे सीधे पदार्थ मिलाकर रंग तैयार करते हैं। ऐसे में होली को होली के ढंग से मनाइए। दुश्मनी न निभाई जाये वरना आने वाले समय में लोग माफ नहीं करेंगे। लोग होली के नाम पर घर में छुप कर बैठ जाएंगे और होली का पर्व सिमट जाएगा।
 काले रंग में लेड ऑक्साइड होता है जो बीमारी उत्पन्न करता है।  दिमाग को कमजोर करता है, हरे रंग में कॉपर सल्फेट पाया जाता है जो जलन, सूजन, अस्थाई अंधापन ला सकता है। सिल्वर रंग में एलुमिनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर का कारण होता है, नीले रंग में भयंकर त्वचा रोग उत्पन्न करने वाले रासायनिक पदार्थ होते हैं, लाल रंग में मरक्यूरिक सल्फाइड होता है, बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है। ऐसे में इन रंगों से बचना चाहिए पलाश के फूल रात भर पानी में भिगोकर होली खेलनी चाहिए। पलाश के फूलों से होली खेलना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जो रक्तचाप को नियमित करती है, पिता, वायु ,रक्त दोषों को दूर करती है। शरीर में शक्ति ,मानसिक शक्ति पैदा करती है। यहां तक कि मेहंदी पाउडर हल्दी, बेसन आदि से रंग तैयार किया जा सकता है। चंदन से भी रंग तैयार किया जा सकता है। पालक, धनिया, पुदीने की पत्तियों से भी रंग तैयार किया





जा सकता है। मेहंदी के साथ आंवला मिलाकर भी रंग तैयार किया जा सकता, गेहूं की बालियां पीसकर गुलमोहर आदि की पत्तियों से भी रंग तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार ऐसे रंग प्रयोग करें जो हर इंसान खुशी खुशी होली खेलने के लिए बाध्य हो जाए।

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