Powered By Blogger

Saturday, April 25, 2020


एनीज
**************************** ***************************** **

************************
एनीसीड
**********************
******************* *
पिंपीनेला एनिसम
******************
********************

चक्रपुष्प
****************
*******************

पिंपिनेला एक जड़ी बूटी है। जड़ और पौधे के कुछ हिस्से जो जमीन के ऊपर उगते हैं, दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इसे पुष्पचक्र/ चक्रपुष्प आदि नामों से जाना जाता है। यह एक मोटी सौंफ के दाने होते हैं।
यहश्वसन पथ के संक्रमण, मूत्र पथ के संक्रमण ,
मूत्राशय और गुर्दे की पथरी, और एडिमा के लिए पिंपिनेला लेते हैं। पिंपिनेला का उपयोग पाचन में मदद करने के लिए भी किया जाता है। इसे कच्चा भी खाते हैं।
 खराब मुंह और गले के लिए सीधे प्रभावित क्षेत्र पर पिंपिनेला लगाया जाता है। खराब घावों के उपचार के लिए इसे नहाने के पानी में मिलाते हैं।
पिंपिनेला की जड़ के कुछ निर्माताओं ने कुछ अन्य जड़ी
बूटियों को गुप्त रूप से जोड़कर उनके उत्पाद महत्वपूर्ण बनाया है।
 पत्तों में मीठा अनीस स्वाद होता है, वे चबाने के लिए बहुत ताजा होते हैं और सलाद, पुडिंग, सूप, स्टोव आदि जैसे लगते हैं।
सुगंधित बीज को कच्चा खाया जाता है या कच्चे या पके हुए खाद्य पदार्थों जैसे सूप, पीजा, ब्रेड और केक में स्वाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके उपयोग से भोजन पचाने की शरीर की क्षमता में सुधार होता है। बीज के पकने पर पूरे पौधे को काटकर बीज को काटा जाता है। फिर पौधों को एक सप्ताह के लिए गर्म, शुष्क स्थिति में रखा जाता है और फिर बीज निकालने के लिए थ्रेशर प्रयोग किया जाता है।
बीज से एक आवश्यक तेल का उपयोग मिठाई, आइसक्रीम, च्युइंग गम, अचार आदि में भोजन के स्वाद के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग अक्सर अल्कोहल वाले पेय में किया जाता है। पत्तियों और बीजों को पीसकर प्रयोग किया जाता है। 

कुछ पदार्थ भी इससे बनाए जाते हैं वहीं इसका तेल निकालकर प्रयोग किया जाता है जिसमें भी औषधीय गुण होते हैं। यह पूरे पाचन तंत्र के लिए एक विशेष रूप से उपयोगी टॉनिक है जो पेट के रोगों को दूर करती है।
 बीज उपयोग किया जाने वाला भाग है। इसके तेल में एनेथोल पाया जाता है। यह स्तन-दूध उत्पादन के लिए जड़ी बूटी के उपयोग किया जाता है।
  इसमें मिलने वाले आवश्यक तेल का उपयोग बगैर सलाह के नहीं करना चाहिए। इसका बीज अस्थमा, काली खांसी, खांसी और पेक्टोरल के साथ-साथ पाचन संबंधी विकारों जैसे कि हवा, अपच के उपचार में आंतरिक रूप से किया जाता है।
 बाह्य रूप से इसका उपयोग जूं, खुजली के संक्रमण के इलाज में काम लेते हैं। बीज स्तनों में सूजन या दूध के प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए लगाया जा सकता है। बीज से एक आवश्यक तेल प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग इत्र, दांत के पेस्ट, औषधीय रूप से और भोजन के स्वाद के रूप में किया जाता है।
पके हुए बीज से प्राप्त एक आवश्यक तेल का उपयोग वाणिज्यिक में, मसाला, मास्किंग एजेंट और इत्र के रूप में किया जाता है। पीसे हुए बीज को दंतमंजन और माउथवॉश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पौधा कीटों को दूर भगाता है। यह चूहों को आकर्षित करता है।
 इसे एनीज़ पिंपीनेला अनिसम कहा जाता है जिसे अनीसेड भी कहा जाता है। यह एशिया का  एक फूल वाला पौधा है। यह स्टार ऐनीज़, सौंफ़, से मिलता है किंतु उनमें और एनीज में अंतर होता है। यह व्यापक रूप से खेती की जाती है और भोजन और मादक पेय का स्वाद लेने के लिए उपयोग किया जाता है।
   एनीस एक शाकाहारी वार्षिक पौधा है। पौधे के आधार पर पत्तियां सरल होती हैं। तने के ऊपर की पत्तियां पंखनुमा होती हैं। फूल या तो सफेद या पीले होते हैं।  फल एक आयताकार होता है जिसे ऐनीज़ेड कहा जाता है। पहली बार मिस्र इसके औषधीय महत्व के लिए खेती की गई थी।
ये सूखा मिट्टी में सबसे अच्छे होते हैं।ये बीज से पैदा होते हैं। क्योंकि पौधों में मूसला जड़ पाई जाती हैं। व्यंजनों में लंबे समय से स्वाद व्यंजन, पेय और कैंडीज का उपयोग किया जाता है। 
 एनीज में नमी,प्रोटीन, वसायुक्त तेल,आवश्यक तेल,स्टार्च,रूक्षांस पाए जाते हैं। 
अनीस मीठा और बहुत सुगंधित है, जो इसके विशिष्ट स्वाद से अलग है। बीज का उपयोग चाय, कन्फेक्शनरी,चॉकलेट में किया जाता है। केक भी बनाए जाते हैं।
 ऐनीज़ का मुख्य उपयोग पेट फूलना कम करने के लिए किया जाता है। यह मूत्र को उकसाता है, दूध की प्रचुरता को बढ़ाता है और शारीरिक वासना को बढ़ाता है। महिलाओं में ल्यूकोरिया के काम आता है। इसका इस्तेमाल नींद की कमी के इलाज के रूप में किया जाता था, सांसों को तरोताजा करने के लिए, बीजों का उपयोग भूख उत्तेजक, मूत्रवर्धक के रूप में किया ग























या है।  इसका इस्तेमाल शिकार और मछली पकडऩे दोनों के लिए किया जाता है। मछली को आकर्षित करने के लिए इसे मछली पकडऩे के लिए लगाया जाता है।
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगी है खेती---
*******************************
************************
*****************
किसान कृषि में बदलाव करने लगे हैं और परंपरागत खेती की बजाय अब सब्जी एवं औषधीय पौधे उगाने लगे हैं। भारत के राज्य हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में जहां रेतीली जमीन है वहां भी इसकी खेती शुरू कर दी है। महेंद्रगढ़ के सुनील कुमार सीहमा अपने 2 एकड़ में पुष्प चक्कर (जिसे मोटी सौंफ) कहते हैं तथा डेढ़ एकड़ में ऊंट कटारा उगाए हैं जो कि दोनों ही पौधे औषधीय है। इन्हें कोई आवारा जंतु तथा पालतू जंतु भी नहीं खाते। ऊंट कटारा रेगिस्तान में अधिक उगता है और कांटे वाला पौधा है जो अनेक औषधियों में काम आता है। सुनील कुमार ने बताया कि उनके खेत में 15 क्विंटल ऊंट कटारा होने की संभावना है जबकि
 5 क्विंटल चक्कर पुष्प होने की संभावना है। वर्तमान में फसल पैदावार लेने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में इसके भाव अच्छे है। एक 1 एकड़ में जहां सरसों 7 क्विंटल के करीब हो जाती है जो 30 हजार रुपये के करीब बिकती है वही ऊंट कटारा से करीब 1.40 लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। उन्होंने विगत वर्ष केसर उगायी थी जिसमें भारी नुकसान हुआ।
 उन्होंने बताया कि बरेली से बीज लेकर आए थे और वही बेचा जाना है। बीज प्रदाता उन्हें खरीद कर ले जाएंगे। इन पौधों की देखरेख की अधिक जरूरत नहीं होती महज 3 बार पानी दिया है। सुनील कुमार सिहमा के मोबाइल 9899820583 है जिनसे बीज एवं अन्य सहायता के लिए संपर्क किया जा सकता है।
इन पौधों से खेत में बेहतर दर्जे का खाद भी पैदा होता है। ऐसे में उन्होंने कहा कि वे जिले में शायद पहले किसान होंगे जिन्होंने इस प्रकार की खेती की है। ये पौधे आयुष विभाग के तहत आते है  और आस पास मंडियां नहीं हैं। 

Hoshiar Singh Writer Kanina Haryana



No comments: