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Tuesday, April 21, 2020

कोरोना से बचने के लिए उपयोगी पौधे
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महामारी
जब किसी रोग का प्रकोप सामान्य की अपेक्षा अधिक होता हो तो महामारी करते हैं। महामारी किसी एक स्थान, क्षेत्र, जनसंख्या पर प्रभाव नहीं बल्कि कई देशों एवं महाद्वीपों में फैलती है तभी से महामारी कहा जाता है।
 इतिहास
यदि विगत इतिहास पर नजर डालें तो अनेकों बार महामारी फैली हैं। 1915 से 1926 तक इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी फैली जिसका  प्रभाव मानव के तंत्रिका तंत्र पर पड़ा। तत्पश्चात 1918 से 1920 स्पेनिश फ्लू ने दुनिया भर को चपेट में लिया, यह प्रथम विश्व युद्ध के कारण फैला था। इस बीमारी में भारत के सैनिक भी प्रभावित हुए थे जो विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। हैजा महामारी का प्रभाव 1961 से 1973 तक चला।
हैजा 5 साल की समय अवधि में एशिया के कुछ हिस्सों में फैला। कोलकाता में खराब जल संचय प्रणाली ने इस शहर को भारत की महामारी का केंद्र माना गया था। 1968 से 1969 तक फ्लू बीमारी जिसे इन्फ्लूएंजा नाम से जाना गया। यह बीमारी कई देशों में फैली। 1974 में चेचक की बीमारी फैली जिसने विश्व के चेचक के 60 प्रतिशत मामले भारत में देखे गए किंतु डब्ल्यूएचओ की सहायता से 1977 में चेचक मुक्त कर दिया।
1994 में सूरत में प्लेग फैला। लोग शहर को छोड़कर के लोग दूसरे देशों में चले गए। इसमें खुली नालिया, सीवरेज की गलत व्यवस्था मानी गई थी। 2002 से 2004 तक सार्स नामक रोग फैला वहीं 2006 में डेंगू और चिकनगुनिया फैला। 2009 में गुजरात में हेपेटाइटिस फैला। 2014-15 में उड़ीसा में पीलिया का प्रकोप हुआ। 2014-15 में स्वाइन फ्लू का प्रकोप चला। 2017 में इंसेफेलाइटिस का प्रकोप चला तो 2018 में निपाह वायरस तथा 2019 में अब कोरोनावायरस आया। इस प्रकार महामारी बार बार आई हैं और लोगों की जिंदगी को लील गई हैं। यह माना जा रहा है जल्द ही कोरोना की वैक्सीन तैयार होगी और लोगों को बचाया जा सकेगा।

कोरोनावायरस-
 कोविड-19 एक नए किस्म का विषाणु है जो माना जा रहा है चीन के वुहान शहर में 2019 दिसंबर के मध्य में शुरू हुआ। यह रोग उन लोगों में देखने को मिला जो मछली एवं समुद्री जीव जंतु बेचते हैं एवं व्यापार करते हैं। यह भी पता लगा है कि यह चमगादड़ आदि से इंसान में पहुंचा। चीनी वैज्ञानिकों ने 2019 में इस वायरस  की पहचान की जिसे 2019 एनसीओवी नाम से जाना जाता है। यह सार्स से मिलता-जुलता एक विषाणु है।
20 जनवरी 2020 को चीन ने नावेल कोरोनावायरस के कारण फैलने वाली निमोनिया महामारी को रोकने के लिए पर प्रभावी प्रयास करने का आग्रह किया। 14 मार्च 2020 तक दुनिया में 58100 मौतें हो चुकी 9 फरवरी तक परीक्षण के बाद 88000 मामलों का खुलासा हुआ था। 20 मार्च 2020 तक दुनिया के करीब 160 देशों में फैल गया। अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया और इसे महामारी का रूप दिया गया।
  दिनोंदिन इसकी चपेट में हजारों लोग आते जा रहे हैं और यह एक बहुत बुरी बीमारी बन चुकी है। करीब डेढ़ लाख व्यक्ति पूरे संसार के मारे जा चुके हैं जबकि 22 लाख लोगों से भी अधिक में इस वायरस की पुष्टि हो चुकी है। हर देश में हाहाकार मचा है। भारी संख्या में लोग मर रहे हैं। लोगों के पास आने से अधिक फैलता है।
 नामकरण

 कोरोना वायरस का नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 दिया जो आज पूरे विश्व में तबाही का मंजर बन चुका है। पूरा ही विश्व इसकी चपेट में आ चुका है। आए दिन इसकी चपेट में आने से नए संक्रमित रोगी मिल रहे हैं।
लक्षण--
इस बीमारी के शुरुआत में निमोनिया जैसी लक्षण सामने आए जिसका कारण सार्स कोरोनावायरस पाया गया। शुरुआत में हल्की सर्दी, जुकाम, बुखार के लक्षण प्रकट होते हैं और यह रोग बिना किसी इलाज के कारण तेजी से बढ़ रहा है। 6 लोगों में से एक में गंभीर सांस लेने की तकलीफ पाई जाती है।
श्रेणियां-
वैसे तो इस रोग के लक्षण कई बार दिखाई देते हैं तो कई बार नहीं दिखाई देते किंतु प्रोफेसर विल्सन ने इसकी चार श्रेणियां बनाई है। चारों श्रेणियां लक्षणों पर आधारित है। तीसरी श्रेणी के लक्षण होने पर इसे पॉजिटिव माना जाता है उन्हें अस्पताल में रखा जाता है और चौथी श्रेणी के लोग गंभीर बीमार होते हैं। जरूरी नहीें सभी लोग इससे पीडि़त हो क्योंकि शरीर का प्रतिरक्षी तंत्र जितना मजबूत होता है यह रोग नहीं लग सकता।
फैलने के कारण-
 अक्सर माना जाता है कि इस रोग को फैलने में हवा प्रमुख कारण बनती है किंतु यह रोगाणु हवा में नहीं फैलता अपितु खांसी के की बूंदे रोगी व्यक्ति से हवा में फैलती है। यदि रोगी व्यक्ति छींकता है या खांसता है तो 3 फीट दूरी अर्थात एक मीटर दूरी तक इस की बूंदे जाकर गिरती है।
यह ऐसा और वायरस है जो कमजोर माना जाता है किंतु यह विभिन्न वस्तुओं पर कुछ समय से लंबे समय तक जीवित रहता है। जिसके कारण इंसान संक्रमित हो जाता है।

बीमारी से बचाव-
 बीमारी से बचने का एकमात्र तरीका सोशल डिस्टेंस बनाकर रखना, हाथों को बार-बार साबुन से धोना, जिन वस्तुओं को छुए उनको सेनिटाइज करें, हाथों को धोए, मुंह पर मास्क लगाकर ही कुछ हद तक रोग से बचा जा सकता है। बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है। अभी तक इसकी कोई दवा नहीं बनी है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है। इसके कई लक्षण हो सकते हैं जैसे खांसी, सांस की तकलीफ किंतु लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। बुजुर्ग व्यक्ति अधिक प्रभावित होते हैं। इस रोग के अभी तक वैक्सीन नहीं बनी है। माना जा रहा है जल्द ही वैक्सीन तैयार हो जाएगी और इस रोग से बचा जा सकेगा।
कोरोना वायरस
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कोविड-19
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वायरस
वायरस को विषाणु नाम से जाना जाता है। 1888 में मेयर वैज्ञानिक ने खोजा था जो जब तक सजीव कोशिका से बाहर होता है निर्जीव कहलाता है और जब सजीव कोशिका में प्रवेश करता है तो तेजी से संतान पैदा करता है। यह सजीव तथा निर्जीव दोनों के गुण रखता है। कोरोना विषाणु एक नया वायरस है जिससे लाखों लोग मृत्यु के कगार पर जा चुके हैं।  इससे बचने के लिए अनेकों आयुर्वेदिक उपाय बताए गए हैं। यद्यपि रोग होने पर अभी तक कोई दवा इसके लिए नहीं बनी है।
बचाव-
गुनगुना पानी-
 वायरस के प्रभाव से बचने के लिए सबसे जरूरी है कि नियमित तौर पर गुनगुना पीना पिएं। पानी धरा पर तीन चौथाई है जिसका सूत्र एचटूओ है। इसमें हाइड्रोजन एवं आक्सीजन क्रमश: दो एवं एक भाग मिलकर बनता है। पीने योग्य धरती पर एक फीसदी से भी कम है।
पानी प्रतिदिन वैसे तो सभी पीते हैं किंतु गर्म पानी से गरारे करने चाहिए तथा प्रतिदिन गर्म पानी पीने से इस विषाणु से बचा जा सकता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता-
 इस रोग से बचने का सबसे बेहतरीन उपाय है शरीर में रोग रोधक क्षमता होनी चाहिए। आमतौर पर व्यक्तियों में रोग लगता है जिनमें रोग रोधक क्षमता कम होती है। रोग रोधक क्षमता पैदा करने के लिए आंवला, एलोवेरा, गिलोय, नींबू/संतरा आदि कारगर माने जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तुलसी, लोंग, अजवायन कारगर बताई गई है। तुलसी को चाय में या पानी में तुलसी का रस डालकर पिया जा सकता है।गर्म दूध -
गर्म दूध विशेषकर हल्दी मिलाकर पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए प्रतिदिन एक गिलास दूध में चौथाई चम्मच हल्दी डालकर पीना आयुर्वेद के जानकार बेहतरीन मानते हैं। इसके अलावा कुछ बने हुए काढ़ा बाजार में भी मिलते हैं। जिनसे भी रोग रोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
यह भी माना जाता है कि वातावरण साफ-सुथरा होगा तो इस रोग के रोगाणु नहीं पलेंगे। आस पास साफ सुथरा रखने के लिए और नीम की पत्तियां, गूगल राल और कपूर जलाकर धुआं की जा सकती है। जो इन रोगाणुओं को के अतिरिक्त अनेकों रोगाणुओं को भी मारती है।
इसके अलावा घर में शुद्धता के लिए गूगल,  इलायची, तुलसी, लोंग, गाय का घी और खांड आदि को भी जलाया जा सकता है।
इम्यून सिस्टम अर्थात रोग रोगरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नियमित रूप से तुलसी, काली मिर्च, लौंग, अदरक का रस शहद में लेने से बहुत लाभ होता है। जो व्यक्ति चाय के शौकीन हैं उनको नियमित रूप से तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी अदरक, अजवाइन आदि से बनी दो -तीन चाय प्रतिदिन प्रयोग करने करनी चाहिए जो काढ़ा का काम करती है।
  स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई निर्देशों का पालन भी जरूर करना चाहिए ताकि कोरोना से बचा जा सके ।आमतौर पर आयुष मंत्रालय द्वारा समय-समय पर अनेक उपाय बताए जाते हैं। आमतौर पर घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, घर से बाहर निकलते हैं तो मुंह पर मास्क, हाथों में दस्ताने होनी चाहिए।  फिजिकल डिस्टेंस बनाई जानी चाहिए। आयुष मंत्रालय ने शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय बताते हुए
च्यवनप्राश का उपयोग करने, तुलसी, दालचीनी, सौंठ, मुनक्का से बना काढ़ा पीने, नींबू संतरा आदि प्रयोग करने पर बल दिया है। वही मुंह में एक चम्मच तिल या नारियल का तेल डालकर थोड़ी देर के लिए रखे और बाद में थूक दे, पीना नहीं है। यह विधि यदि मुंह में किसी प्रकार के रोगाणु चले जाए तो उनसे छुटकारा दिलाती है।
सूखी खांसी गले में खराश आए तो पोदीना का या अजवायन का प्रयोग करने चाहिए। लौंग पाउडर को शहद में मिलाकर भी लिया जा सकता है। काली मिर्च और लौंग शरीर के लिए बेहद लाभप्रद है।
आइए अब देखें यह पदार्थ क्या होते हैं। आंवला एक पौधे का फल है जो बहुत अधिक औषधीय माना जाता है। हर प्रकार से लाभप्रद होता है इसमें आंवले में बहुत अधिक औषधीय गुणों के कारण यह बहुत अधिक प्रसिद्ध है। आंवला को फाइलेंथस एंब्लिका नाम से जाना जाता है।
यह फल होता है। इसका प्रयोग किसी भी रूप में जरूर करना चाहिए। इसका रस अचार, मुरब्बा जैम आदि अनेक पदार्थ बने होते हैं।
एलोवेरा- इसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा कहते हैं। यदि एक बहु औषधीय पौधा है जो

सुंदरता बढ़ाने के अतिरिक्त इसका इसका अनेक रूपों में प्रयोग करते हैं। एलोवेरा को गुणों का खजाना नाम दिया गया है।
गिलोय इसे टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया नाम से जाना जाता है। यह एक बेल है जो पानी के अभाव में भी जीवित रह सकती है। कई वर्षों तक जीवित रहती है। बड़े पत्तों वाले इस पौधे में रोग रोधक क्षमता के गुण बहुत अधिक पाए जाते हैं। घरों में नीम पर उगाई जा सकती है। इसका काढ़ा रोग रोधक क्षमता बढ़ाता है।
नींबू जिसे लेमन कहते हैं। यह सिट्रस लिमोना नाम से जाना जाता है। इसमें विटामिन सी बहुत अधिक पाई जाती है। यह भी बहु औषधीय पौधा है। वास्तव में नींबू का फल बहुत कारगर औषधीय पौधा है। विभिन्न रूप में प्रयोग किया जाता है तथा सेहत के लिए बहुत बेहतरीन फल है।
  तुलसी घरों की शोभा बढ़ाता है जिसे ओसिमम टेनुईफोलियम/सेंक्टम नाम से जाना जाता है। इसके पत्ते बेहद लाभप्रद होते हैं। इसको नियमित रूप से प्रयोग करना हर प्रकार से लाभप्रद माना जाता है।
हल्दी जिसे टरमेरिक नाम से जाना जाता है। लेकिन हल्दी एक पौधे की जड़े में मिलती है। वास्तव में इसे करकम्मा लोंगा नाम से जाना जाता है। यह बेहद औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। यह धार्मिक पौधा भी माना जाता है। इस पौधे की जड़ की गांठों में हल्दी मिलती है। दूध में डालकर सेवन किया जाता है।
पुदीना - इसे मेंथा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम मेंथा स्पाईकाटा है। अति औषधीय पौधा इसके पत्ते विशेष रूप से कारगर होते हैं। जिनको गर्मियों में बहुत प्रयोग किया जाता है।

दालचीनी- इसे सिन्नामोमम वैरम नाम से जाना जाता है। इस पौधे की छाल औषधियों के रूप में काम में लाई जाती है। प्राय चाय में डालकर काढ़ा बनाया जाता है।
मुनक्का- इसे रेजिन नाम से जाना जाता है। यह एक पौधे का फल है कच्चा ही खाया जाता है। मुनक्का वास्तव में अंगूर जैसा एक फल है जिसको सुखाकर काम में लेते हैं तथा विभिन्न औषधियों के रूप में यह काम आता है।
अदरक तथा सौंठ- अदरक जिंजर नाम से जाना जाता है। सूखी हुई अदरक को सौंठ नाम से जाना जाता है। इसे जिंजीबर ऑफिसिनेल नाम से जाना जाता है। यह बहुत सी बीमारियों में लाभप्रद है। इसे प्राय पौधे की जड़ कहते हैं।

ईलाइची -
इसे इलिटेरिया कार्डेमम कहते हैं। यह पौधे का फल है जिसमें बीज भी पाए जाते हैं। बहु उपयोगी फल एवं बीज हैं। शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है।






















लौंग-यह कोटे की शक्ल की होती है। इसका वैज्ञानिक नाम साइजीजियम एरोमेटिकम नाम से जाना जाता है। यह वास्तव में पौधे की कलियां-फूल होती है। देखने में कील कांटे जैसा लगता है लेकिन वह उपयोगी पौधा है। दवाओं के रूप में काम में लाया जाता है। वास्तव में कली-पुष्प सूखने पर पुष्प काली नाम दिया गया है। काली मिर्च इसे ब्लैक पिपर कहते हैं। वास्तव में इसका वैज्ञानिक नाम पाइपर निग्रम है। काली मिर्च पौधे पर लगने वाला एक फल है जो जो व्रत आदि में भी काम में लाया जाता है।
नारियल वास्तव में एक पौधे का कठोर फल होता है। जिसका बीज नारियल कहलाता है। उसका वैज्ञानिक नाम कोकोस नुसीफेरा है। यह इसका तेल बहु उपयोगी होता है जिससे विषाणु हटाने के लिए गरारे किए जा सकते हैं।
तिल जिसे सेसेम नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह व्रत आदि में काम में लेते हैं तथा तिल पौधे का बीज है। इसका वैज्ञानिक नामसेसेम इंडीकम है। इसका तेल मुंह में डालकर गरारे किए जा सकते हैं।
अजवाइन यदि बहु उपयोगी पौधा है। वास्तव में इसका वैज्ञानिक नाम ट्रेकीस्पर्मम एम्मी है। यह वास्तव में बिसफस वीड नाम से जाना जाता है जो शरीर के लिए बहुत लाभकारी है ।यह पौधे का एक बीज होता है।
गूगल एक पौधे से प्राप्त होता है जिसको कौमीफोरा विघटाई नाम से जाना जाता है।
गूगल पौधे से  रेजिन प्राप्त होता है जिसे गूगल गम कहते हैं। यह उपयोगी पदार्थ है। यह वास्तव में गूगल पौधे की राल होती है। 
 नीम नीम आज़ाडीरिकता इंडिका कहते हैं। बहु क्योंकि पौधा है जिसके पत्ते औषधियों में काम आते हैं। घरों में भी काम में लाया जाता है।

 **होशियार सिंह, लेखक,कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा**






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