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Thursday, April 9, 2020


हिरनखुरी
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हरिण खुरी
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कॉन्वोल्वुलस आरवेंसिस
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बिंडवीड
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फील्ड बाइंडवीड
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जंगलों में मिलने वाले एक पौधे का नाम हिरणखुरी है। यह एक खरपतवार के रूप में पाई जाती है जिसका मूल एशिया एवं यूरोप माना जाता है।
   हरिणखुरी प्राय गेहूं, जौ, सरसों आदि के पौधों पर चढ़ी हुई सफेद फूलों वाली लता है। इसके फूल सुबह सुबह जब मौसम ठंडा होता है तो खिलते हैं और दूर तक दिखाई देते हैं किंतु शाम के समय या गर्मी पडऩे से बंद हो जाते हैं।
   यह धरती पर पसरने वाली या पेड़ों पर चढऩे वाली लता है जो करीब दो मीटर तक ऊंची हो सकती है। गेहूं सरसों या जौ के अलावा अन्य पौधों पर भी चढ़ सकती है।
हरिणखुरी एक बेलदार पौधा होता है जो जमीन पर फैलता है। ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर भारत में इसे पशुचारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका साग ग्रामीण क्षेत्रों में बनाकर बाजरे एवं धान की रोटी से खाया जाता है।
 सर्दियों में उगने वाली या फिर बारिश के समय उगने वाली यह लता ग्रामीण क्षेत्रों में हरिणखुरी नाम से जानी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम कन्वोल्वलस आरवेन्सिस है जिसे अक्सर फील्ड बाइंडवीड नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकंद है जो कॉन्वोल्वुलेसी कुल से संबंधित है जिसे सुबह की महिमा परिवार नाम से जाना जाता है। यह एक रेंगेन वाला शाक है जो बारहमासी(एक वर्षीय) होता है। इसकी दो प्रजातियां मिलती हैं।
   इसे ग्रामीण क्षेत्रों में कई नामों से जाना जाता है जिनमें यूरोपीय बाइंडवीड, विथ विंड, सुबह की महिमा आदि नामों से जाना जाता है। यह छोटे-छोटे प्रतान वाला, रेंगने वाली बेल होती है।
पत्तियां सर्पिल रूप से व्यवस्थित होती हैं। पत्तियां अकसर तीर के आकार की, लंबी और डंठलवाली होती हैं। फूल कीप जैसे या तुरही के आकार के होते हैं। फूलों का रंग सफेद या हल्के गुलाबी रंग के होते हैं।  
   हरिणखुरी के फूल एक इंच लंबे होते हैं। फल हल्के भूरे, गोल होते हैं। प्रत्येक फल में 2 बीज होते हैं जो पक्षियों द्वारा खाए जाते हैं और लंबे समय तक मिट्टी में पड़े रह सकते हैं। इस पौधे के तने अन्य पौधों के चारों ओर मुड़कर एक घड़ी की दिशा में घूमते हैं।
 फूल आकर्षक होते हैं जो पिटूनिया या विलायती आक का आभास कराते हैं। यह एक अति तेजी से फैलने वाली खरपतवार होता है। इसके बीज अन्न में मिलकर विषैला बनाता है। ये फसल की पैदावार को कम करते हैं। वर्ष 1998 अमेरिका में इस पौधे ने पैदावार घटाकर नुकसान पहुंचाया था।
    हरिणखुरी सूरज की रोशनी, नमी और पोषक तत्वों के लिए फसली पौधों से प्रतिस्पर्धा करता है।
बिंडवेड में कई अल्कलॉइड होते हैं। हरिणखुरी को खेत से खत्म करना मुश्किल है। जड़ें बहुत गहराई तक जाती हैं। इसके बीज 20 साल पुराने भी अंकुरित हो सकते हैं और 8 से 10 मीटर गहराई तक जा सकती हैं।

  इससे लोशन बनाया जाता है जो कीटों के काटने पर राहत देने वाला होता है। पशु इसे चाव से खाते हैं। इसके तने में हल्का दूध जैसा पदार्थ निकलता है। अत्यधिक मासिक धर्म के लिए पत्तियों व तने का काढ़ा बनाया जाता है। भारत में बाइंडवीड का उपयोग एक शोधक के रूप में किया जाता है।

        हरिणखुरी का उपयोग त्वचा रोग में होता है वहीं कैंसर के इलाज में काम आने संबंधित जानकारी हासिल की जा रही हैं।
यह प्राकृतिक खाद्य एंटीऑक्सिडेंट के रूप में किया जा सकता है। पूरे पौधे से एक हरे रंग की डाई प्राप्त की जाती है। इसे रस्सी के रूप में काम में लेते हैं। यह लचीला और मजबूत है, लेकिन लंबे समय तक चलने वाला नहीं है।
भेड़ और मवेशी, मुर्गियां पत्तियों और तनों को खाती हैं।  शाकनााी तैयार करने के काम आता है।
जड़, और जड़ से बना एक राल मूत्रवर्धक, रेचक होता है। जड़ के रस का उपयोग बुखार के उपचार में किया जाता है। फूलों से बनी एक चाय रेचक है और इसका उपयोग बुखार और घावों के उपचार में भी किया जाता है। पत्तियों से बनी एक ठंडी चाय रेचक है।

 हरिणखुरी की पतितयों का रस अत्यधिक मासिक धर्म प्रवाह को कम करने के लिए आंतरिक रूप से लिया जाता है। पौधों को बांधने के लिए तने का उपयोग रस्सी की भांति किया जाता है।
पत्तियों को उबालकर सब्जी के रूप में खाया जाता है। चीन के लोग अंगूर के रस में मिलाकर पीते हैं। यह अधिक दस्त का कारण बन सकता है।
कुछ देशों में फूल प्रयोग
























किया जाता है। कुछ लोग डिश तैयार करते हैं जिसमें पत्तियों एवं तने को को उबाला जाता है और पानी से अच्छी तरह धोया जाता है तत्पश्चात दही में मिलाकर प्रयोग करते हैं।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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