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Friday, April 24, 2020

ऊंट कटारा


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इकाइनोट्स इकिनेटस  
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ग्रामीण ब्रह्मदंडी या ऊंट कंटक 
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  ऊंट कटारा नामक पौधा जिसे ग्रामीण लोग ब्रह्मदंडी या ऊंट कंटक आदि नामों से जानते हैं वास्तव में एक बहु औषधीय पौधा है जिसे इकाइनोट्स इकिनेटस नाम से जाना जाता है। भारत, पाकिस्तान श्रीलंका और दूसरे देशों में पाया जाता है जिसके लंबे-लंबे कांटे होते हैं और इसे झाड़ी के रूप में देखा जा सकता है। इसके तने पर सफेद बालनुमा आकृतियां मिलती है।
 पत्ते बहुत लंबे होते हैं। फूलों का गुच्छा कांटेदार होता है। इसके पूरे ही शरीर पर बड़े बड़े कांटे पाए जाते हैं। दिसंबर से लेकर जनवरी तक इस पर भारी मात्रा में बड़े-बड़े फूल आते हैं जो बाद में खत्म हो जाते हैं। यह पौधा रेगिस्तानी क्षेत्रों में अधिक पनपता है।
 इसे ऊंट
कटारा जिसे मिल्क थिसल,कैमल्स थिसल आदि नामों से जाना जाता है जो रेगिस्तानी क्षेत्रों में और मैदानी क्षेत्रों में ही बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। सूरजमुखी से मिलता जुलता यह पौधा सूरजमुखी को कुल से संबंध रखता है।
 दिल्ली में ड्रॉप्सी नामक रोग फैलाने वाले सत्यानाशी के पौधे जैसी ही इसकी पत्तियां कांटेदार होती है। इसके डोडे लगते हैं जिन पर कांटे होते हैं। नीले और बैंगनी रंग के फूल गुच्छों के रूप में आते हैं। यह द्वि-बीजपत्री पौधा है। 

   ऊंट कटारा/ऊंट कटेरा चरपरा, कड़वा कफ- वात नाशक, पुरुष तत्ववर्धक तथा मधुमेह नाशक, , हृदय रोग और विषों को शान्त करने वाला है । इसके बीज शीतल पुरुष तत्व वर्धक और मधुर है । इसकी जड़ें कामोद्दीपक है ।
 इंसान ही नहीं अपितु पशुओं के लिए अति गुणकारी औषधि है जिसका जनन संबंधित हर प्रकार की बीमारी में प्रयोग होता है। यह वनस्पति यकृत को उत्तेजना देने वाली और क्षुधा-वर्धक है । आंखों की तकलीफ, जीर्ण ज्वर, जोड़ों के दर्द और दिमाग की बीमारियों में भी यह लाभदायक है द्य यह शुक्राणु हीनता की समस्या का सबसे प्रभावशाली समाधान है। यह पुरुष तत्व वर्धक एवं जोश-वर्धक है। इससे नपुंसकता दूर होती है । इसकी जड़ कामोद्दीपक पौष्टिक और मूत्र निस्सारक होती है।यह गठिया को भी ठीक करती है।
 

आयुर्वेद में
ऊंट कटारा को बल देने वाला, शुगर रोग नाशक, पुष्टि कारक, दर्द निवारक, प्रमेह नाशक, काम शक्तिवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
ऊंट कटेरा जंगलों में भारी मात्रा में तथा बंजर भूमि पर भारी मात्रा में देखने को मिल सकता है। जिसके ऊपर गोल फल लगते हैं। यह घरेलू जानवरों की बीमारी में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है क्योंकि इस पौधे को ऊंट बहुत चाव से खाते हैं इसलिए इसे
ऊंट कटारा नाम से जाना जाता है। रेत और बंजर खेतों में बहुतायत में मिलता है। इसकी जड़ और छाल बहुत सी दवाओं में काम में लाया जाता है।ऊंट कटारा कड़वे स्वाद का होता है किंतु यह वात नाशक रोग निवारक, हृदय रोग और विष को नष्ट करने वाला होता है। इसके बीज शीतलकारी होते हैं और मधुरकारी होते हैं। इसकी जड़े गर्भ श्रावक होती हैं। जड़े कामोद्दीपक होती है। यूनानी मतानुसार यकृत को शक्ति, उत्तेजना देता है। पुरुष तत्व वर्धक है।
आंखों की तकलीफ को दूर करता है। बुखार, जोड़ों के दर्द, मस्तक की बीमारी को दूर करता है। शुक्राणुहीनता की समस्या को समाधान में यह बेहतर है। माना जाता है इसकी जड़ शुक्र में, प्रमेह में काम आती है। यही नहीं इसकी जड़ गठिया रोग, मंदाग्नि, खासी, शीघ्रपतन, जननांग दोष दूर करने के काम आती है। शरीर की कमजोरी मिट जाती है, वहीं सर्पदंश, बिच्छू के कांटे में भी इसकी जड़ काम में लाई जाती है।
 यदि किसी स्त्री को प्रसव में कष्ट हो रहा हो तो इसकी जड़ को पानी में घिसकर पिला देने से बहुत लाभ होता है और तुरंत प्रसव हो जाता है। इस पौधे से गर्भ निवारक, गर्भपात आदि में भी काम में लेते हैं।
ऊंट कटारा एक ऐसा पौधा है जो हर किसी को दीवाना बना देता है। इसका विभिन्न दवाओं में चमत्कारिक प्रभाव पाया जाता है। ऊंट कटरा
अधिक प्यास लगने पर, खांसी, पाचन शक्ति विकार में, सुजाक रोग में, त्वचा रोग विकारों में, यौन रोगों में, अधिक पसीना आने में, बुखार आदि को दूर करने में काम में लाया जाता है।
 इसकी जड़, पत्ते, फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसे मिल्क थिसल नाम से जाना जाता है। कितनी ही दवाइयां इस पौधे से बनती है। बाजार में इसका पाउडर भी मिलता है।
यह पौधा राजस्थान में अत्यधिक पनपता है। ऊंट कटरा कई शारीरिक दोषों को दूर करता है। इसकी जड़ की छाल को पान में रखकर खाया जाता है ताकि खांसी दूर हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने समय से इसकी जड़ के लेप को इंद्रियों पर लगा कर सहवास को बढ़ाते आए है। पाचन शक्ति बढ़ाने में बहुत अधिक योगदान है। पेट की मंदाग्रि को दूर करने में भी इसका अहम योगदान है। यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली और सेक्स पावर बढ़ाने वाली औषधि है।






 कमजोर आदमी को भी मर्द बनाने वाली जंगली जड़ी बूटी है। कहने कोई ऊंट कटरा है लेकिन है औषधीय गुणों से परिपूर्ण एक झाड़ी है। 

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगी है खेती---
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किसान कृषि में बदलाव करने लगे हैं और परंपरागत खेती की बजाय अब सब्जी एवं औषधीय पौधे उगाने लगे हैं। भारत के राज्य हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में जहां रेतीली जमीन है वहां भी इसकी खेती शुरू कर दी है। महेंद्रगढ़ के सुनील कुमार सीहमा अपने 2 एकड़ में पुष्प चक्कर (जिसे मोटी सौंफ) कहते हैं तथा डेढ़ एकड़ में ऊंट कटारा उगाए हैं जो कि दोनों ही पौधे औषधीय है। इन्हें कोई आवारा जंतु तथा पालतू जंतु भी नहीं खाते। ऊंट कटारा रेगिस्तान में अधिक उगता है और कांटे वाला पौधा है जो अनेक औषधियों में काम आता है। सुनील कुमार ने बताया कि उनके खेत में 15 क्विंटल ऊंट कटारा होने की संभावना है जबकि
 5 क्विंटल चक्कर पुष्प होने की संभावना है। वर्तमान में फसल पैदावार लेने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में इसके भाव अच्छे है। एक 1 एकड़ में जहां सरसों 7 क्विंटल के करीब हो जाती है जो 30 हजार रुपये के करीब बिकती है वही ऊंट कटारा से करीब 1.40 लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। उन्होंने विगत वर्ष केसर उगायी थी जिसमें भारी नुकसान हुआ।
 उन्होंने बताया कि बरेली से बीज लेकर आए थे और वही बेचा जाना है। बीज प्रदाता उन्हें खरीद कर ले जाएंगे। इन पौधों की देखरेख की अधिक जरूरत नहीं होती महज 3 बार पानी दिया है।
इन पौधों से खेत में बेहतर दर्जे का खाद भी पैदा होता है। ऐसे में उन्होंने कहा कि वे जिले में शायद पहले किसान होंगे जिन्होंने इस प्रकार की खेती की है। ये पौधे आयुष विभाग के तहत आते है  और आस पास मंडियां नहीं हैं। 

 **होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़







हरियाणा**

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