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Wednesday, April 20, 2022

                               सर्दी गर्मी और पेड़ पौधे
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 यूं तो सर्दी और गर्मी स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होती है वहीं पेड़ पौधों के लिए भी लाभप्रद है। सर्दी गर्मी बढऩे की एक सीमा होती है लेकिन सीमा को यदि क्रास कर दिया जाए तो पेड़ पौधों के साथ नष्ट होने की समस्या आ जाएगी छोटे पौधे खत्म हो जाएंगे वही बड़े पौधों पर भी कुप्रभाव पड़ता है। यही हालात सर्दी की होती है छोटे पौधे जिनमें शाक एवंं झाड़ी लगभग समाप्त हो जाते हैं। गर्मी का बढऩा भूमिगत पानी को गहराई पर ले जाता है क्योंकि पानी की मांग बढ़ जाती है और दिनोंदिन अधिक से अधिक पानी का दोहन किया जाता है। इसके चलते भूमिगत जल स्तर हर वर्ष गिरता चला जाता है। सर्दी की बात करें तो सर्दी एक सीमा तक पेड़ पौधों के लिए लाभप्रद होती है। इस जगत में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं। कुछ सर्दी को पाकर ही फूल और फल देते हैं वहीं कुछ ऐसे पेड़ पौधे है जो गर्मी को पाकर ही फूल और फल देते हैं। यदि सदी बढ़ती चली जाए तो गमलों के पौधे भी नष्ट हो जाते हैं वही झाड़ी भी लगभग समाप्त होने के कगार पर चली जाती है। बड़े-बड़े पौधों के पत्ते जो झुलस जाते हैं और कई बार  सर्दी के कारण अनेकों पेड़ पौधे सूख जाते हैं।  इसी प्रकार गर्मी बढ़ती चली जाती है जो घातक प्रभाव डालती है। वैसे तो गर्मी के बढऩे से भूमि के अंदर घुसे हुए हानिकारक कीड़े फसलों के लिए घातक होते वह मर जाते हैं वही ज्यादा तपन से धूप भूमि में प्रवेश कर जाती है और गर्मी ज्यों ज्यों धरती में प्रवेश करेगी तो बारिश के बाद पानी का प्रभाव सकारात्मक होगा किंतु गर्मी की भी एक सीमा होती है हर वर्ष तापमान बढ़ता चला जा रहा है। यूं तो पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बन रही है।
क्या है ग्लोबल वार्मिंग-
आज के दिन एक समस्या ने पूरे विश्व को हिला कर रख रखा है वह है ग्लोबल वार्मिंग। दिनोंदिन प्रदूषण बढ़ रहा है, विशेषकर आग जलाना, उद्योग धंधे, कारखाने, फैक्ट्रियां, वाहन आदि का धुआं निकलता रहता जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड गैस 
निकलती है। कार्बन डाइऑक्साइड हवा में धरती के आसपास एक परत बना देती है जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों को जो कम तरंगदैध्र्य की होती हें उन्हें अपने अंदर से आने तो देती लेकिन जब धरती को गर्म कर देती और अधिक तीरंगदैध्र्य की किरणों के रूप में वापिस जाना चाहे तो उनको वापस नहीं जाने देती अपितु वापस धरती पर धकेल देती है जिसके चलते धरती का तापमान बढ़ता चला जाता है। इसे ग्लोबल वार्मिंग नाम दिया गया है। यह वार्मिंग विश्व के लिए संकट बन रहा है चूंकि तापमान बढ़ेगा तो धु्रवों की समस्त बर्फ पिंघल जाएगी और समुद्र तल एक सौ मीटर के करीब बढ़ जाएगा। जिसके चलते पानी शहरों की ओर दौडऩे लगेगा और लोग काल के ग्रास बन जाएंगे किंतु यह समस्या किसी एक देश की नहीं अपितु सभी देशों में पूरे संसार में चल रही है। धुआं कारखानों से, घरों से, हर जगह निकल रही है, पेड़ पौधे काटे जा रहे हैं परिणाम स्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ रही है और ऑक्सीजन घटती जा रही है। यदि पेड़ पौधे लगाए जाए तो कार्बन डाइऑक्साइड पर काबू पाया जा सकेगा और ग्लोबल वार्मिंग से बचा जा सकेगा। इसका एकमात्र तरीका है अधिक से अधिक पेड़ लगाए। एक साधारण सा उदाहरण ग्लोबल वार्मिंग का- शीशा चढ़ी हुई कार जिसके अंदर देखते-देखते तापमान बढ़ जाता है क्योंकि शीशा ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जैसे कार्बन डाइऑक्साइड की पर्त हवा में कार्य करती है। ऐसे में कार्बन डाइऑक्साइड को घटाने, पेड़ पौधे लगाने पर जोर देना चाहिए ताकि विश्व को एक गंभीर संकट से बचाया जा सके।
यदि सर्दी और गर्मी लगातार अपनी सीमा को लांघ जाएंगे तो निश्चित रूप से जीव जंतुओं पर बुरा प्रभाव पड़ेगा व पेड़ पौधे भी निश्चित रूप से कम होते चले जाएंगे। वैसे भी पेड़ पौधों को कम करने के लिए इंसान लगा हुआ है। उनको अधिक से अधिक काटकर नष्ट करने पर तुला हुआ है। किसी जमाने में हर गांव में बणी होती थी और ये बणियां जीव जंतु के लिए सुरक्षित स्थान होते थे। यहां गर्मी सर्दी में जीव जंतु पेड़ों के नीचे बैठकर आराम महसूस करता था किंतु अकेले कनीना की बात की जाए तो अधिकांश बणियां समाप्त कर दी गई है। आने वाले समय में शायद बनियों को ढूंढते रह जाएंगे क्योंकि भारी लूट मची हुई है । बणियों की देखरेख कोई करने वाला नहीं जिसके चलते दिनोंदिन लोग बणियों पर अतिक्रमण ़बढ़ते जा रहे हैं। यही कारण है कि जीव जंतु कम होते जा रहे हैं।

कनीना की बणियां एवं स्थितियां-
 धीरे-धीरे कनीना की बावनी भूमि से जंगलों(बेणियों) की आकार सिमटकर समाप्त होने को पहुंच चुका है। कभी आधा दर्जन बेणियों का स्वामी होता था किंतु आज बेणी के नाम पर अल्प  पेड़ बचे हैं। चारों ओर से अतिक्रमण की शिकार ही नहीं अपितु बेणियों का अस्तित्व ही समाप्त करके खेतों में बदल दिया गया है।

  कनीना की बेणियों कई नामों से जानी जाती थी जिनमें छोटी बेणी, बड़ी बेणी, रणास की बेणी, मानका की बेणी, पीपलवाली बेणी प्रसिद्ध होती थी किंतु वर्तमान में चारों ओर से संकीर्ण बना दिया है, बोरवैल बना डाले हैं, पेड़ काटकर खेती के रूप में काम में लिया जा रहा है, कूड़ा कचरा डाला जा रहा है, मिट्टी को उठाकर ले जाया जा रहा है वहीं पेड़ों की दिनरात कटाई की जा रही है। कुछ लोगों ने तो बणियों के पेड़ काटकर काफी मुनाफा कमा लिया है। वैसे तो ये लोग बड़े कहलाते हें किंतु पेड़ों की कटाई कर बेचने से पीछे नहीं हटते।
 नगरपालिका ने महज मिट्टी न उठाने संबंधित बोर्ड लगाकर अपने काम की इतिश्री समझ ली है। आज तक के इतिहास में किसी बेणी की पैमाइश करवाकर अतिक्रमण को नहीं रोका है जिसके चलते बेणियों का अस्तित्व संकट में है।
  जहां तक छोटी बेणी में धार्मिक स्थान बना दिए गए हैं वहीं कनीना का सामान्य बस स्टैंड बनवा दिया गया है। बड़ी बेणी में एक निजी संस्था को पट्टे पर 58 एकड़ जमीन दे डाली है। रणास की बेणी में सीवर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगवा दिया है वहीं गंदे पानी को इक_ा करने के लिए जोहड़ बनवा दिया है और रही बात मानका की बेणी तथा पीपल वाली बेणी ये किसानों ने ही समाप्त कर दी है। पीपलवाली बणी में अगर कनीना न्यायालय एवं सरकारी कार्यालय बन जाता तो बेहतर होता आज किसी भी बेणी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आर पार देखा जा सकता है। यह दुर्दशा आखिरकार किसानों ने, पेड़ माफिया ने तथा अन्य जनों ने कर डाली है। यदि नगरपालिका इन बेणियों की पैमाइश करवा दे तो सैकड़ों एकड़ जमीन पर पेड़ काटकर बनाई गई खेती को छोड़ते वक्त किसानों को बहुत दर्द होगा ही साथ में कुछ स्थानीय नेताओं की राजनीति पर गहरे संकट छा जाएंगे।

   आश्चर्यजनक पहलु यह है कि इन बेणियों में जिस किसी का जितना वश चला उसने उतने ही पेड़ समाप्त कर दिए हैं। यहां तक कि नलकूप बनाकर, भैंसों का बाड़ा, कूड़ा कचरा डालने का स्थान, मिट्टी उठाने का स्थान, यहां तक कि पक्के मकान बनाकर रहने का आरामदायक स्थान बना लिया है। जहां जंगली जीव रहते थे वहां उन जीवों को डराकर अन्यत्र भेज दिया और उस जगह आज इंसान रहने लगे हैं। कहावत है -राम नाम की लूट है लूटी जा सो लूट, कहावत शत प्रतिशत चरितार्थ होती है। कोई जितनी जमीन रोकना चाहे तो रोक सकते हैं, स्थानीय प्रशासन नाम की कोई चीज तो है ही नहीं।
 कभी बेणियों में सैर सपाटा के लिए लोग यह समझकर जाते थे कि साफ सुथरी हवा मिलेगी किंतु अगर अब को बेणी में जाएगा तो मरे हुए जीवों की बदबू, विवाह शादी का कूड़े कचरे की बदबू, मिट्टी कटाव से उड़ती धूल से सांस रोग, प्रदूषण युक्त हवा में रोग लेकर ही घर लौटेगा। और तो और लोगों ने मिट्टी को काट-काटकर बेच डाला है। पेड़ पौधों को रातोंरात काट डाला है। मिट्टी कटाव देखकर लगता है कि किसी पहाड़ी क्षेत्र में आ गए हैं।
  बेणियों के आस पास लोगों से बात करनी चाही तो उल्टे उनकी भौहें तन गई। अधिकारियों से बात करनी चाही तो मौन हो गए। कुछ पर्यावरण को चाहने वाले जन दबी जुबान में कहने लगे कि नगरपालिका को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

क्या कहते हैं अधिकारी-
नगरपालिका ने तो बोर्ड लगाकर स्पष्ट कर दिया है कि मिट्टी काटने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। पेड़ पौधे काटने वालों को नहीं बख्शा जाएगा।
क्या है लोगों की मांगे-
* बेणियों के अस्तित्व को बचाया जाए।
*पेड़ काटने वालों पर निगरानी रखी जाए और उन पर जुर्माना किया जाए।
* सभी बेणियों की पैमाइश करवाई जाए और अतिक्रमण करने वालों पर केस दर्ज करवाए जाए। अब तक जितना उन्होंने नुकसान किया है उसकी भरपाई करवाई जाए।
* बेणियों में मरे हुए पशु एवं विवाह शादियों का कूड़ा कचरा डालने पर प्रतिबंध लगाया जाए और न माने उन पर जुर्माना किया जाए।
* बेणियों में गार्ड रखे जाए जो पेड़ काटने व अतिक्रमण करने वालों की सूचना विभाग को देते रहे।
घटा दिया है बणियों का आकार
-कितनी होती थी जमीन
 कनीना की सभी बणियों का आकार घटता ही जा रहा है। आधा दर्जन बणिया हैं जिनमें से कोई भी बणी अपने वास्तविक आकार से आधी भी नहीं बची है। सरकार एवं प्रशासन ने कभी इन बणिया की पैमाइश नहीं करवाई है। यही कारण है कि बणिया में पक्के मकान, ट्यूबवेल एवं अतिक्रमण करके पेड़ों को नष्ट कर दिया है वहीं जमीन को कब्जा लिया है।
  कनीना में करीब छह बणिया होती थी जिनमें से रणास, पीपलवाली, बड़ी बणी, छोटी बणी, मानका आदि प्रमुख थी। जहां बड़ी बणी में शिक्षण संस्थान, वाटर स्टोर केंद्र, गौशाला, आवास बनने के अतिरिक्त चारों ओर से अतिक्रमण के चलते बस नाम की बड़ी बणी रह गई है। इस बणी में पेड़ों को भारी क्षति हुई है और अभी भी अतिक्रमण जारी है। उधर छोटी बणी का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है। रणास की बणी में कोई पेड़ नहीं बचा है तो मानका एवं पीपलवाली बणी अब सिकुड़ती जा रही हैं। इन बणिया में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, ट्यूबवेल, आवास बनाने तथा किसानों द्वारा अतिक्रमण के चलते आधी से भी कम रह गई हैं। नगरपालिका ने विगत दशकों से इन बणिया की न तो सुध ली है और न पैमाइश करवाई है। अगर सभी बणिया की सुध ली जाए तो प्राप्त जमीन को बोली पर छोड़कर करोड़ों रुपये की आय प्राप्त हो सकती है वहीं जंगली जीवों का संरक्षण हो सकता है।
कुछ जन अवैध पक्के मकान बनाकर बिजली कनेक्शन, पानी आदि सभी सुविधाएं लेकर के सरकार को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  मिली जानकारी अनुसार कनीना पालिका के करीब 335 कनाल 16 मरला जमीन कृषि योग्य है वहीं कोटिया गांव के पास रणास की बेणी(जंगल)32 कनाल पांच मरला है जहां सीवर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लग चुका है वहीं बड़ी बेणी करीब 800 कनाल की है जिसमें से 58 एकड़ डीएवी को 99 सालों के पट्टे पर, पांच एकड़ गौशाला के लिए तथा दस एकड़ वन विभाग एवं वाटर सप्लाई हेतु दिया हुआ है, 115 प्लाट भी बने हुए हैं। करोड़ों की लागत से कान्ह सिंह पार्क भी बना है। पीपलावाली बणी 125 कनाल, मानका वाली बणी 82 कनाल, दस मरला है।

  सभी बणियां चारों ओर से पेड़ काटकर संकीर्ण बना डाली हैं वहीं अवैध निर्माण करके बिजली पानी कनेक्षन भी ले रखे हैं। जंगली जीव लुप्त हो गए हैं वहीं जंगलों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आर पार देखा जा सकता है। इनकी पैमाइश करवाकर पौधारोपण करवाने की मांग बढऩे लगी है।
आज जंगली जीव को देखा जाए तो पूर्णता खत्म होते जा रहे हैं। वैसे भी ट्यूबवेल के स्थान पर बोर आ गए हैं जहां पानी खेल एवं पाऊंडा तथा जल को सुरक्षित रखने के स्रोत खेतों में नहीं बचे जिसके चलते भीषण गर्मी की मार झेलते हुए पक्षी दाना और पानी के चाहत में मर जाते हैं। कभी इस क्षेत्र में शशक,काला तीतर, तीतर, बटेर, हरिण, गीदड़ और भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर भारी संख्या में होते थे किंतु अब यहीं कहीं देखने को मिलेंगे। यदि यही हालात चलती रही तो आने वाले समय में गर्मी और सर्दी का प्रभाव बढ़ता चला जाएगा और पेड़ पौधों की संख्या घटने के चलते इंसान की संख्या बढ़ती चली जाएगी और जीने के लिए पानी पेट्रोल पंप की भांति मिलेगा वहीं गैस सिलेंडर भी अपने साथ लेकर जाना पड़ेगा वरना इंसानों का जीना मुश्किल हो जाएगा जिससे पेड़ पौधे नष्ट किए जा रहे उधर से लगाए नहीं जा रहे हैं परिणाम यह है कि अधिक सर्दी और गर्मी जीव जंतु के लिए घातक साबित हो रही है।
 धीरे-धीरे कनीना की बावनी भूमि से जंगलों(बेणियों) की आकार सिमटकर समाप्त होने को पहुंच चुका है। कभी आधा दर्जन बेणियों का स्वामी होता था किंतु आज बेणी के नाम पर अल्प  पेड़ बचे हैं। चारों ओर से अतिक्रमण की शिकार ही नहीं अपितु बेणियों का अस्तित्व ही समाप्त करके खेतों में बदल दिया गया है।

  कनीना की बेणियों कई नामों से जानी जाती थी जिनमें छोटी बेणी, बड़ी बेणी, रणास की बेणी, मानका की बेणी, पीपलवाली बेणी प्रसिद्ध होती थी किंतु वर्तमान में चारों ओर से संकीर्ण बना दिया है, बोरवैल बना डाले हैं, पेड़ काटकर खेती के रूप में काम में लिया जा रहा है, कूड़ा कचरा डाला जा रहा है, मिट्टी को उठाकर ले जाया जा रहा है वहीं पेड़ों की दिनरात कटाई की जा रही है। कुछ लोगों ने तो बणियों के पेड़ काटकर काफी मुनाफा कमा लिया है। वैसे तो ये लोग बड़े कहलाते हें किंतु पेड़ों की कटाई कर बेचने से पीछे नहीं हटते।
 नगरपालिका ने महज मिट्टी न उठाने संबंधित बोर्ड लगाकर अपने काम की इतिश्री समझ ली है। आज तक के इतिहास में किसी बेणी की पैमाइश करवाकर अतिक्रमण को नहीं रोका है जिसके चलते बेणियों का अस्तित्व संकट में है।
  जहां तक छोटी बेणी में धार्मिक स्थान बना दिए गए हैं वहीं कनीना का सामान्य बस स्टैंड बनवा दिया गया है। बड़ी बेणी में एक निजी संस्था को पट्टे पर 58 एकड़ जमीन दे डाली है। रणास की बेणी में सीवर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगवा दिया है वहीं गंदे पानी को इक_ा करने के लिए जोहड़ बनवा दिया है और रही बात मानका की बेणी तथा पीपल वाली बेणी ये किसानों ने ही समाप्त कर दी है। पीपलवाली बणी में अगर कनीना न्यायालय एवं सरकारी कार्यालय बन जाता तो बेहतर होता आज किसी भी बेणी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आर पार देखा जा सकता है। यह दुर्दशा आखिरकार किसानों ने, पेड़ माफिया ने तथा अन्य जनों ने कर डाली है। यदि नगरपालिका इन बेणियों की पैमाइश करवा दे तो सैकड़ों एकड़ जमीन पर पेड़ काटकर बनाई गई खेती को छोड़ते वक्त किसानों को बहुत दर्द होगा ही साथ में कुछ स्थानीय नेताओं की राजनीति पर गहरे संकट छा जाएंगे।
   आश्चर्यजनक पहलु यह है कि इन बेणियों में जिस किसी का जितना वश चला उसने उतने ही पेड़ समाप्त कर दिए हैं। यहां तक कि नलकूप बनाकर, भैंसों का बाड़ा, कूड़ा कचरा डालने का स्थान, मिट्टी उठाने का स्थान, यहां तक कि पक्के मकान बनाकर रहने का आरामदायक स्थान बना लिया है। जहां जंगली जीव रहते थे वहां उन जीवों को डराकर अन्यत्र भेज दिया और उस जगह आज इंसान रहने लगे हैं। कहावत है -राम नाम की लूट है लूटी जा सो लूट, कहावत शत प्रतिशत चरितार्थ होती है। कोई
जितनी जमीन रोकना चाहे तो रोक सकते हैं, स्थानीय प्रशासन नाम की कोई चीज तो है ही नहीं।
 कभी बेणियों में सैर सपाटा के लिए लोग यह समझकर जाते थे कि साफ सुथरी हवा मिलेगी किंतु अगर अब को बेणी में जाएगा तो मरे हुए जीवों की बदबू, विवाह शादी का कूड़े कचरे की बदबू, मिट्टी कटाव से उड़ती धूल से सांस रोग, प्रदूषण युक्त हवा में रोग लेकर ही घर लौटेगा। और तो और लोगों ने मिट्टी को काट-काटकर बेच डाला है। पेड़ पौधों को रातोंरात काट डाला है। मिट्टी कटाव देखकर लगता है कि किसी पहाड़ी क्षेत्र में आ गए हैं।
  बेणियों के आस पास लोगों से बात करनी चाही तो उल्टे उनकी भौहें तन गई। अधिकारियों से बात करनी चाही तो मौन हो गए। कुछ पर्यावरण को चाहने वाले जन दबी जुबान में कहने लगे कि नगरपालिका को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
क्या है लोगों की मांगे-
* बेणियों के अस्तित्व को बचाया जाए।
*पेड़ काटने वालों पर निगरानी रखी जाए और उन पर जुर्माना किया जाए।
* सभी बेणियों की पैमाइश करवाई जाए और अतिक्रमण करने वालों पर केस दर्ज करवाए जाए। अब तक जितना उन्होंने नुकसान किया है उसकी भरपाई करवाई जाए।
* बेणियों में मरे हुए पशु एवं विवाह शादियों का कूड़ा कचरा डालने पर प्रतिबंध लगाया जाए और न माने उन पर जुर्माना किया जाए।
* बेणियों में गार्ड रखे जाए जो पेड़ काटने व अतिक्रमण करने वालों की सूचना विभाग को देते रहे।
घटा दिया है बणियों का आकार
-कितनी होती थी जमीन
 कनीना की सभी बणियों का आकार घटता ही जा रहा है। आधा दर्जन बणिया हैं जिनमें से कोई भी बणी अपने वास्तविक आकार से आधी भी नहीं बची है। सरकार एवं प्रशासन ने कभी इन बणिया की पैमाइश नहीं करवाई है। यही कारण है कि बणिया में पक्के मकान, ट्यूबवेल एवं अतिक्रमण करके पेड़ों को नष्ट कर दिया है वहीं जमीन को कब्जा लिया है।
  कनीना में करीब छह बणिया होती थी जिनमें से रणास, पीपलवाली, बड़ी बणी, छोटी बणी, मानका आदि प्रमुख थी। जहां बड़ी बणी में शिक्षण संस्थान, वाटर स्टोर केंद्र, गौशाला, आवास बनने के अतिरिक्त चारों ओर से अतिक्रमण के चलते बस नाम की बड़ी बणी रह गई है। इस बणी में पेड़ों को भारी क्षति हुई है और अभी भी अतिक्रमण जारी है। उधर छोटी बणी का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है। रणास की बणी में कोई पेड़ नहीं बचा है तो मानका एवं पीपलवाली बणी अब सिकुड़ती जा रही हैं। इन बणिया में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, ट्यूबवेल, आवास बनाने तथा किसानों द्वारा अतिक्रमण के चलते आधी से भी कम रह गई हैं। नगरपालिका ने विगत दशकों से इन बणिया की न तो सुध ली है और न पैमाइश करवाई है। अगर सभी बणिया की सुध ली जाए तो प्राप्त जमीन को बोली पर छोड़कर करोड़ों रुपये की आय प्राप्त हो सकती है वहीं जंगली जीवों का संरक्षण हो सकता है।
कुछ जन अवैध पक्के मकान बनाकर बिजली कनेक्शन, पानी आदि सभी सुविधाएं लेकर के सरकार को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  मिली जानकारी अनुसार कनीना पालिका के करीब 335 कनाल 16 मरला जमीन कृषि योग्य है वहीं कोटिया गांव के पास रणास की बेणी(जंगल)32 कनाल पांच मरला है जहां सीवर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लग चुका है वहीं बड़ी बेणी करीब 800 कनाल की है जिसमें से 58 एकड़ डीएवी को 99 सालों के पट्टे पर, पांच एकड़ गौशाला के लिए तथा दस एकड़ वन विभाग एवं वाटर सप्लाई हेतु दिया हुआ है, 115 प्लाट भी बने हुए हैं। करोड़ों की लागत से कान्ह सिंह पार्क भी बना है। पीपलावाली बणी 125 कनाल, मानका वाली बणी 82 कनाल, दस मरला है।
  सभी बणियां चारों ओर से पेड़ काटकर संकीर्ण बना डाली हैं वहीं अवैध निर्माण कर





के बिजली पानी कनेक्षन भी ले रखे हैं। जंगली जीव लुप्त हो गए हैं वहीं जंगलों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आर पार देखा जा सकता है। इनकी पैमाइश करवाकर पौधारोपण करवाने की मांग बढऩे लगी है।

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