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Friday, June 3, 2022

                               पटेरा घास
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 टाइफा एलिफेंटीना
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पटेर घास
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 कभी नदियों के किनारे, जोहड़, घनी आबादी के गंदे नालों में पटेर या पटेरा घास बहुत अधिक मात्रा में मिलती थी जिसे एलीफेंट घास आदि अनेक नामों से जाना जाता है। प्राचीन समय से ही लोग पटर घास के विषय में परिचित थे। इसे उखाड़ कर अनेक कामों में लेते थे। इसकी बहुत अधिक ऊंचाई पाई थी और बिल्कुल बाजरे एवं झुंडा से मिलती-जुलती होती है। पटेर घास पानी को साफ करने में अहं भूमिका निभाती है।
 पटर घास पर बाजरे जैसा भुट्टा लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पटेरा नाम से भी जानते हैं। पानी को शुद्ध करने के लिए काम में लाई जाती है कारण है कि विभिन्न शहरी क्षेत्रों में जोहड़ो या गंदे पानी को साफ करने के लिए पटे घास उगाई जाती है। एक और जहां मशीनें से जल को साफ करने में करोड़ों रुपए खर्च आता है वही इसका इसको उगाने में ना के बराबर खर्च आता है। वही यह गहरी होने के कारण पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन छोड़ती है। सबसे बड़ी खूबी है कि पटेर घास गंदे पानी की गाद कम कर देती है। और गाद धीरे-धीरे खत्म हो जाती। इस कारण पानी में आक्सीजन संचार अधिक तेजी होता है। यही नहीं यह विषैले तत्वों को भी जड़ों के नीचे इक_ा कर देती है। यह दीमक रोधी होती है। सूख जाती है तो इसकी की कटाई कर ली जाती है। प्लाई बोर्ड की तरह बोर्ड बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि जब यह घा मिल जाती
थी रोटी रखने की चंगेरी, विभिन्न प्रकार के बच्चों के खिलौने, छाबड़ी तथा रस्सी बनाने के काम में लेते थे। अब यह घा खत्म होने के कगार पर है। पटेर घास को अब कहीं देखते हैं तो बुजुर्ग बड़े प्रसन्न हो जाते हैं।
 अब तो दूषित जल को साफ करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाते जिनमें पटेर घास उगाना पसंद किया जाता है। जब पटर घास पक जाती है इस पर एक बहुत सुंदर भुट्टा जिसमें बहुत बारीक बारीक दाने जैसी रचनाएं नजर आती है। अनेक रोगों में भी काम में लेते हैं। क्योंकि इसका स्वाद कड़वा होता है इसलिए पेशाब संबंधित रोग ,घाव को भरने, दाद वगैरह को दूर करने एवं कुष्ठ रोग आदि के लिए प्रयोग करते हैं। परंतु पटेर घास औषधियों के बजाय विभिन्न प्रकार के साज बाज के सामान बनाने के काम में लेते हैं। पुराने समय में बीज भरने के लिए, बीज डालने के लिये, चटाई इसी से बनाते थे। यहां तक कि पटेर घास से ही झोपड़पट्टी भी बनाई जाती थी। झाडू बनाने के काम में लेते हैं। पशुचो के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जोहड़ों में पर्याप्त मात्रा में खड़ी हुई देखी जा सकती है। लोग इसको जानते नहीं इसलिए पानी के पौधे समझ बैठते हैं। वरना यह पटेर घास होती है।
 पटेल कहां 6 से 12 फुट ऊंचाई तक बढ़ती है फूल एक लिंगी होते हैं तथा बीजों से बारीक बारीक बाल जैसी रचनाएं जुड़ी होती है। यदि इसे अधिक मात्रा में ले लिया जाए तो बदहजमी पैदा कर सकती हो। किसी ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन के रूप में तथा दवाओं के रूप में प्रयोग करते हैं। तारीफा जगदीश अप्लाई जॉब पकाकर खाया जाता है इसके तने में स्टार्च बहुत अधिक मात्रा मिलता है। वही इसमें रेशे भी मिलते हैं। इसके तने भी कुछ लोग  खाने के काम में लेते हैं। इसके बीजों से तेल निकाला जाता है। यह दवाओं में भी काम आता है। इसके पत्ते, तने आदि पेपर बनाने के काम में भी लाए जाते हैं। यहां तक कि रिस्सयां बनाई जाती है।
 पुराने समय का पटेर का उपयोग लोग नहीं भूले हैं। कुछ लोग पटेर को चारे के रूप में भी प्रयोग करतेे हैं। परंतु सबसे अधिक उपयोग में झाड़ू बनाने तथा झोपड़पट्टी बनाने के काम में लेते थे। अब न तो झोपड़पट्टी बची हैं और न झाडू के








रूप में अधिक उपयोग किया जाता है।



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