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Friday, April 15, 2022

              स्वाद का खजाना है सूखे फल एवं सब्जियां
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इंसान की चाहत फल सब्जियों को लंबे समय तक खाने की होती रही है। पुराने वक्त मेें जब फल एवं सब्जियां जो अधिक मात्रा में पैदा होती थी उनको सूखाकर रख लेता था। यही कारण है कि उनका उपयोग लंबे समय तक करता था। आज भी कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा देखने को मिलती है। इंसान के लिए गैर मौसम में भी फल सब्जियां खाने को मिल सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सबसे पुरानी विधि सूखाने की रही है।  मई जून-जुलाई में भीषण गर्मी पड़ती है, इस गर्मी में किसी भी फल सब्जी को सूखाना आसान हो जाता है। वैसे तो छुहारा, किशमिश, हल्दी, सोंठ आदि कितने ही पदार्थ सूखाकर प्रयोग किए जाते हैं।
 एक समय था जब ग्रामीण क्षेत्रों में भारी मात्रा में बेर लगते थे जितने खा लेता था बाकी को सूखा लिया जाता था, उसे मेवा के रूप में प्रयोग करते थे और लोग ग्रामीण क्षेत्रों में सूखे बेर ही बेहतर मेवा माना जाता था और मेवा नाम से जानते थे। यद्यपि बेर का छुहारा, बाजार में मिलने वाले छुहारे से अलग होता है परंतु स्वाद कुछ हद क एक जैसा होता है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बेर को सूखाकर रखा जाता है और थोड़ी देर  पानी में डालकर प्रयोग किया जाता है।
बेर सूखाने की विधि उस समय ज्यादा कारगर थी जब जंगल में भारी संख्या में बेरी के पौधे होते थे। बागोंवाले तथा गोल वाले बेर जिन्हें पचेरी बेर कहते हैं, को सुखाकर छुहारा बनाते थे जिनको बड़े चाव से खाते थे। ग्रामीण लोगों के लिए विशेेषकर बच्चों के लिए ये सूखे बेर ही मेवे का काम करते थे। बेशक आज के जमाने में बादाम ,अखरोट, किशमिश न जाने कितने ही मेवे बाजार में आ गए हैं लेकिन प्राचीन समय के मेेवे सूखे बेेर होतेे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में छाछ को भी सूखाकर उसे पानी में डालकर
ताजा छाछ तैयार कर लेते हैं, वह बात अलग है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में झींझ जरूर खाई जाती थी। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में जांटी का पेड़ होता है और इस पर लगने वाले फल को सांगर नाम से जाना जाता है। सांगर सब्जी कई स्थान  दामों पर बेचा जाता है किंतु जब सांगर का रंग पीला हो जाता है तो इसमें मिठास बढ़ जाता है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कभी सांगर को सूखाकर रखा जाता था तथा विभिन्न प्रकार के शाक सब्जियां बनाने में प्रयोग कर ली जाती थी और जब सांगर पक जाता था तो उसे झींझ नाम सेे जाना जाता था। उसे पोटली में बांधकर पेड़ पर बांध देते थे ताकि बारिश में बहुत स्वादिष्ट बन बन जाए। लोग इन्हें लंबे समय तक खाते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में झींझ एक उत्तम मेवा माना जाता था। बेशक आजकल की युवा पीढ़ी सांगर का प्रयोग करते वक्त हिचकिचाते हैं। किसी जमाने में सांगर से दर्जनों प्रकार की सब्जियां आदि बनाते थे किंतु आजकल की युवा पीढ़ी सांगर को नहीं खाती तथा रोगों का कारण मानती है किंतु वह जमाना था जब सागर को दूरदराज से ढूंढ कर लाते थे। आज भी बुजुर्ग सागर को उनका नाम लेते ही उत्साहित हो जाते है।  
सांगर किसी जमाने में बहुत प्रसिद्ध सब्जी होती थी, विटामिन और खनिज लवण पाए जाते हैं, जब यह सूख जाता है तो इसका स्वाद मीठा होने के कारण बच्चे चाव से खाते हैं।
यह भी सत्य है कि कुछ बच्चे तो विलायती कीकर के फलों को भी बड़े चाव से खाते हैं किंतु उनकी बजाय झींझ बेहद पौष्टिक होता है।  किसान आज भी उन दिनों की याद करते हैं जब खेतों में जाते और किसी जांटी के नीचे बिखरी हुई झींझ इकट्ठी कर लेते थे। पूरा परिवार बड़े चाव से खाता










था। जो कुछ बाकी बची हुई को पोटली में बांधकर पेड़ से टांग दिया जाता था ताकि किसी भी वक्त उनको खाया जा सके लेकिन मानसून की बारिश के बाद इनका स्वाद अलग हो जाता था तथा यह न तो कठोर थी अपितु यह लचीली हो जाती और मन को लुभाती थी। वर्तमान में झींझ, बेर के छुहारे सब धीरे-धीरे लुप्त हो गए हैं और लोग को याद करके आज भी रो पड़ते हैं।

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