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Monday, April 18, 2022

                                  शामक
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एचिलोना कोलोना
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बर्नयार्ड मिलेट
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समा के चावल
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व्रत के चावल
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जंगली चावल

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सामा राइस
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मोरधन
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समा के चावल, व्रत वाले चावल, सामा राइस बनयार्ड मिलेर्ट, शमा के चावल जिन्हें अक्सर लोग शामक नाम से जानते हैं। इनका वैज्ञानिक नाम एचिलोना कोलोना है। एक घास से प्राप्त होने वाले बीज होते हैं जो व्रत के समय प्रयोग किए जाते हैं। ये देखने में बहुत छोटे, गोल आकार के होते हैं जो अक्सर कई नामों से जाने जाते हैं। अंग्रेजी भाषा में बर्नयार्ड मिलेट कहते हैं हिंदी में अक्षर मोरधन या समा के चावल का जाता है सामा चावल ,श्याम चावल आदि नामों से भी पुकारते हैं। सामा के चावल जंगली चावल भी कहा जाता है क्योंकि एक प्रकार जंगली घास से प्राप्त होते हैं इसलिए लोग इनको जंगली घास के चावल भी कहते हैं। वास्तव में हरियाणा मिलने वाले मकड़ा घास के बीज से बिल्कुल मिलते जुलते हैं। व्रत के समय यह चावल उपयोग में लाए जाते हैं जो आयुर्वेद की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वेद शास्त्रों में भी इनका उल्लेख मिलता है।
 जो लोग वजन घटाना चाहते हैं उनके लिए अच्छा माने जाते हैं। इन में शूगर/चीनी की मात्रा कम होती है ऐसे में शुगर पेशेंट/मधुमेह के रोगी भी प्रयोग कर सकते हैं। व्रत के समय व्यक्ति में स्फूर्ति/ ताकत ऊर्जा प्रदान करते है तथा प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं।  पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और फाइबर युक्त होते हैं इसलिए जिनमें कब्ज/बदहजमी की शिकायत हो उनके लिए बेहतर माने जाते हैं। इन्हें विभिन्न तरीकों से लोग प्रयोग करते हैं। विशेषकर व्रत के समय खिचड़ी, पूड़ी, कचोरी, पुलाव डोसा आदि अनेक पदार्थ बना सकते हैं।
समा के चावल सेहत के लिए लाभप्रद माने जाते क्योंकि इनमें ऊर्जा कम होती है, रुक्षांस  अधिक पाए जाते हैं जिन्हें आसानी से बचा सकते हैं। ग्लूटेन फ्री होते हैं तथा आयरन की मात्रा शरीर में प्रदान करते हैं।

इनका वैज्ञानिक नाम एचिलोना कोलोना है। अक्सर जब भुखमरी हो जाती है, अकाल पड़ जाता है अन्न का अभाव होता है तब ये प्रयोग किए जाते हैं। भारत में राजस्थान में पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। ये उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। पौधा अकसर दो से 8 फुट तक ऊंचाई का होता है तथा सीधा खड़ा मिलता है। तेजी से फैलने वाली एक घास होती है। जो अपने आप उग जाती है परंतु कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती भी की जाने लगी है।
व्रत के समय अकसर सिंघाड़ा का आटा, कुट्टू का




आटा,साबुदाना एवं श्यामक आदि प्रयोग में लाए जाते हैं।
     डा. होशियार सिंह यादव,कनीना, हरियाणा

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