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Saturday, July 11, 2020

 बटेर घास
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सिल्वर काक्सकोंब
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बटेर घास
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श्रीआई
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गरखा, कूर्ट
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श्रीआई कई देशों में पाया जाने वाला, बारिश के समय विशेषकर खारी फसल के साथ उगने वाला यह खरपतवार है जिसको श्रीआई नाम से जाना जाता है। यह शाक बहुत उपयोगी है जबकि यह एक खरपतवार है। कभी किसानों के लिए समस्या बना होता था किंतु धीरे-धीरे अब इसका लोप होता जा रहा है। इसे कई नामों से जाना जाता है और इसके अनेकों प्रकार है। इसकी कुछ प्रजातियां घरों में उगाई जाती है जो शोभा बढ़ाती है। बाग बगीचे में भी देखने को मिल सकती है लेकिन जिसको खाने के काम में लेते हैं वह जंगल में खरपतवार के रूप में पाई जाती है। इसी गरखा, कूर्ट
आदि नामों से पाया जाना जाता है।यह एक सीधा शाक है जिसके अनेक शाखाएं पनपती है लिनकी अधिक ऊंचाई का नहीं होती। एक वर्ष तक जीवित रहता है तत्पश्चात ही समाप्त हो जाता है। भारी मात्रा में के फूल आते हैं जो बहुत सुंदर चमकदार सफेद रंग के होते हैं जिनमें बीच-बीच में अनेकों प्रकार के रंगीन भाग पाए जाते हैं। स्पाइक के रूप में इसका फूल गुच्छे के रूप में नजर आता है। जिस खेत में खड़े होते हैं तो दूर से दिखाई देते हैं। इसका तना बहुत कोमल होता है बाद में पक जाता है। इसके फूल काले रंग के हृदय जैसे बीज पाए जाते हैं। यह भारत में ही नहीं अनेक देशों में भी पाया जाता है।
बुजुर्ग आज भी नहीं भुला पाए जिसने एक बार इसकी सब्जी को खा ली, उसके गुण ही गाते रह जाता है। यह वर्तमान में कुछ जगह उगाया जाता है इसके पत्ते बहुत स्वादिष्ट तथा अनेकों शाक अर्थात साग सब्जी बनाने के काम आता है।
श्रीआई नाम से जाने जाने वाला यह पौधा अपने आप फैलता जाता है। किसान दवाओं का छिड़काव करके इसको नष्ट करते चले गए लेकिन फिर भी यह कुछ जगह मौजूद है। इसके पत्ते भोजन बनाने के लिए विशेष कर साग,सूप बनाने के काम आता है। इसके पत्ते गहरे हरे और मन को लुभाने वाले होते हैं इसलिए अनेक प्रकार की भाजी वगैराह बनाने के काम में लाते हैं। इसे पालक की तरह ही प्रयोग करते हैं। इसके बीज से भी औषधीय तेल प्राप्त होता है।
इसके फूल और बीज कड़वाहट युक्त होते हैं जो आंखों के लिए लाभप्रद, परजीवी नाशक होते हैं। इनका उपयोग खूनी दस्त/ल्यूकोरिया, रक्त स्राव, पेचिश के उपचार में किया जाता है। परजीवी को नष्ट करने के लिए भी काम में लाया जाता है इनके बीजों में जीवाणु रोधी पदार्थ पाए जाते हैं जो स्यूडोमोनास नामक जीवाणु की वृद्धि को रोकता है।
इसका उपयोग डायरिया, खून की कमी ,आंखों से कम दिखाई देना, मोतियाबिंद के उपचार, उच्च रक्तचाप के इलाज में किया जाता है लेकिन ग्लूकोमा वाले लोगों को उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्यूपिल को कमजोर कर देता है। भारत में मधुमेह के उपचार में बीज का उपयोग किया जाता है। पत्तियों और फूलों से एक तरल पदार्थ निकाला जाता है जो शरीर को साफ करने के काम आता है। यह सर्पदंश के इलाज में राहत देता है। जड़ों का उपयोग  एक्जिमा के इलाज में किया जाते हैं।
जंगली तौर पर पाई जाने वाली यह श्रीआई मुफ्त की सब्जी होती है। किसी जमाने में किसान भारी मात्रा में इक_ा करके लाते थे। खेत में जहां गुड़ाई निराई के साथ-साथ इनको इक_ा करके भाजी, पराठे, साग, कढ़ी, खाटा का साग तथा रायता कोफ्ता आदि बनाने में काम लेते हैं। यही कारण है कि बुजुर्गों का आज भी श्रीआई का नाम लेते हैं तो बड़े खुश हो जाते हैं। परंतु यह पौधा धीरे-धीरे लुप्त के कगार पर पहुंच गया है जो कि किसानों ने ही इस को नष्ट कर डाला है। यही कारण है कि आप इस पौधे को किसी जगह देखा जा सकता है।
इसे बटेर घास नाम से भी जाना जाता है।
श्रीआई अपने फूलों के कारण पहचानी जाती है। बहुत चमकदार सफेद चांदी जैसा रंग तथा ऊपर बैंगनी लाल रंग भी मिलता है। यह फूलों के कारण ही पौधा प्रसिद्ध है। बीजों द्वारा प्रसारित होता है। यह पौष्टिक सब्जी होता है। पत्ती और युवा शूट को पकाया जाता है। बीज खाद्य तेल निकाला जाता है आमतौर पर दस्त की कमी, उच्च रक्तचाप मोतियाबिंद में किया जाता है। कुछ देशों में से सजावट के रूप में उपयोग में लाया जाता है जो गमलों में उगाया जाता है। वह खाने लायक नहीं होता। यह रेतीली मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सूखे को सहन कर सकता है परंतु नम मिट्टी में अच्छी प्रकार पनपता है। इसका स्वाद पालक जैसा होता है।
किसान इस पौधे से अच्छी प्रकार परिचित है इसलिए किसानों के लिए यह अनमोल उपहार होता था। यह ठीक है कि धीरे-धीरे अब इसका उपयोग इसलिए बंद हो गया क्योंकि उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। यह बेहतरीन शाक है जो खून की हर प्रकार की कमी को पूरा कर देता है।


             श्रीआई
           सिल्वर कोकसकोंब



            (सेलोसिया अर्जेंटी)
किसान के खेतों में कभी
उगती है कुछ खरपतवार

                  सब्जियों में काम आती हैं
                   प्रयोग करो व्रत या त्योहार,

बाथू, चौलाई और श्रीआई
किसान ने कभी नहीं बचाई

                     धीरे-धीेरे ये  लुप्त हो  रही हैं
                    तरसेंगे फिर इन्हें लोग लुगाई,

हरे भरे पत्तों से युक्त सब्जी
खरीफ फसल में मिलती है

                     सफेद भुट्टे सा फूल खिलता
                      मदमस्त बाजरे में हिलती हैं,

गजब की सब्जी व साग बने
किसान के घर में खाया जाए

                  जब किसान खेतों से घर लौटे
                   तोड़  श्रीआई  घर को ले लाए,

खून की कमी को करती पूरा
काट पीट इसकी भाजी बनाए

                    रायता दही में जब बन जाता है
                    अंगुली को चाट-चाटकर खाए,

कितने ही खनिज लवण मिलते
कितनी इससे मिलती विटामिन

                      मुफ्त की गुणकारी मिले सब्जी
                     जन की उम्र बढ़ जाए दिनोंदिन,

भूल गए क्यों ग्रामीण सब्जी को
कहां गए वो लोग इसे खाने वाले

                        आजकल की जहरीली सब्जी से
                         रोग बढ़ते जा रहे लाइलाज वाले,

कब जागेगा इंसान धरा वाला
कब तक यूं ही करेगा संहार

                          धरती मां ने जग ऋण उतारा
                          जग का धरा पर ऋण उधार।

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

श्रीआई
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 सिल्वर कोक्सकोंब
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सेलोसिया अर्जेटी
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श्रीआई एक शाक का नाम है जो सिल्वर कोक्सकोंब नाम से जाना जाता है। वास्तव में इस का वैज्ञानिक नाम सेलोसिया अर्जेटी है। यह किसी समय हरियाणा भारत के हरियाणा राज्य में बहुत अधिक होता था। अब धीरे.धीरे समाप्त होता जा रहा है। किसानों ने अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार लेनी चाही। परिणाम स्वरूप उसने दवाओं का छिड़काव किया, भारी मात्रा में उर्वरक डालें जिसके चलते श्रीआई पूर्णता लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। यह खरीफ फसल बतौर बाजरा, ग्वार, कपास आदि में भारी मात्रा में होती थी। इसकी बड़ी खूबी थी, गहरा हरे रंग का होती थी। पत्ते लंबे चौड़े होते थे तना इसका हरा होता था। तथा इस पर सफेद रंग के फूलों का गुच्छा आता था जिसमें काले रंग के गोल बीज निकलते थे। जो बहुत सुंदर लगते थे। लेकिन इस पौधे को देखकर लगता था कि वास्तव में यह बहुत स्वादिष्ट होगा क्योंकि इसका गहरा रंग मन को आकर्षित कर लेता था। खेतों में खरपतवार के रूप में पाया जाने वाला यह शाक पूर्णता समाप्त हो गया है।
श्रीआई सब्जी के काम आती है। जब कभी तीज त्योहार एवं व्रत के समय इसका प्रयोग करते करते थे। विभिन्न प्रकार की सब्जियां इससे बनाई जाती थी यहां तक कि खाटा का साग, भाजी बहुत महत्वपूर्ण होते थे, बहुत स्वादिष्ट बनते थे। इस के पराठे तो मानो बहुत अधिक रोचक लगते थे जिनके में खून की कमी होती थी वह कुछ ही दिनों में दूर हो जाती थी। इसके हरे भरे पत्तों में बहुत अधिक लोहा पाया जाता है। इसकी गजब की साग सब्जी बनती थी। बुजुर्ग आज भी इसको नहीं भुला पाये हैं क्योंकि खेतों की शान होती थी।
किसान बेशक अच्छी पैदावार ले रहे हो लेकिन इस शाक को नहीं भुला पाए हैं। दही में रायता बनाकर खाते थे तो उंगलियों को चाटते ही रह जाते थे। बहुत अधिक खनिज लवणों से भरपूर होती थी। यह उम्र बढ़ाने में सहायक थी। आज इसको खाने वाले तो दूर युवा पीढ़ी पहचानती भी नहीं। अगर लाकर रख दिया भी जाए तो युवा पीढ़ी इसे दूर फेंक देगी। यही कारण है कि लोग विशेषकर खून की कमी से रोग बढ़ते जा रहे हैं। यह एक ऐसा पौधा था जो पेट की विभिन्न बीमारियों को दूर करने के काम में लाया जाता था। पेट की जो भी बीमारी होती थी उन सभी में यह औषधि के रूप में काम में लाया जाता था और लोग इसे बहुत पसंद करते थे। आज बस इस पौधे की यादें रह गई हैं। आज अगर चाहे तो बारिश के बाद इक्का.दुक्का पौधा कहीं मिल सकता है। बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में बहुत अधिक फलता फूलता था किंतु अब यह समाप्ति की ओर जा रहा है। यदि किसी में गुर्दे की अमाशय की या आंतों की समस्या होती थी इस पौधे को याद करते थे। इस पौधे जहां चेहरा लाल पड़ जाता था वहीं कार्यों में रूचि बढ़ जाती थी। इससे इंसान बहुत खुश रहता था। 

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

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