Powered By Blogger

Sunday, November 24, 2019

कचरी 

*******************************

*******************************

************************************************ 

कुकुमिस प्यूबिसेंस

*************************************

****************************************** 

 
कचरी एक जंगली बेल होती है जिसके पत्ते कड़वे होते हैं वहीं पीले फूल लगते हैं। प्रारंभ में फल का स्वाद कड़वा होता हैं किंतु बाद में मधुर हो जाता है। इसे इंद्रायण, मृगाक्षी, काचरी आदि नामों से लोग पुकारते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम कुकुमिस प्यूबिसेंस हैं। यह बिगड़े हुए जुकाम, पित्त,कफ, कब्ज,  प्रमेह आदि रोगों में लाभकारी है। पेट के रोगों के लिए इसका नाम सर्वोपरि है। लोगों कई प्रकार की पेट की बीमारियां पाई जाती है जिनको ठीक करने के लिए कचरी का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में यह खरीफ फसल के साथ अर्थात ग्वार, बाजरा, कपास में भारी मात्रा मिलती है।
पकने पर फल में भीनी भीनी खुशबू आती है। आयुर्वेद में इसका वर्णन मिलता है। उसे सब्जी में, कच्चा, और सुखाकर प्रयोग किया जाता है। कभी इसकी खेती नहीं की जाती थी लेकिन अब इसकी खेती भी करने लग गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पथरी को कचरी की जड़ से दूर करने के बारे में लोग परिचित थे। कचरी धारीदार, सफेद,पीली, लाल आदि कई प्रकार की पाई जाती है। भूख बढ़ाने में, काम उद्दीपन, बवासीर, लकवा आदि में भी यह काम आती है। दिल एवं दिमाग को ताकत देती है।

जिन व्यक्तियों पेशाब खुलकर नहीं आता, गैस से संबंधित बीमारी में काम आती है। कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में कचरी का प्रयोग होता है।
कतरी को कुछ लोग खाते नहीं तथा इसकी खुशबू से दूर भागते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कचरी को जमकर उपयोग किया जाता है।

***होशियार सिंह लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा**

No comments: