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Wednesday, July 6, 2022


 पुराने वक्त से प्रयोग करते आ रहे हैं टींट एवं बाडिय़ा
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**************** पुराने समय से बुजुर्ग एक कहावत कहते आए हैं कि -
                होल़ो   पूच्छै   होल़ी  तैं , के  रांधागी  होल़ी  नै ।
                टींट बाडिय़ा सब दिन रांधू, चावल़ रांधू होल़ी नै।।

 यह कहावत बहुत पुरानी है जो सिद्ध करती है टींट एवं बाडिय़ा पुराने समय से इंसान प्रयोग करता आ रहा है। शरीर के लिए बेहद लाभप्रद ये फल एवं फूल कैर पौधे से प्राप्त होते हैं। पुराने समय में हर गांव में हर जगह बणियां होती थी। कैर इन बणियों में पाए जाते है। कैर ऐसे पौधे होते हैं जो सूखे में भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है, वास्तव में आंधी एवं बारिश आदि के तेज बहाव को राोक देते हैं। इन पौधों के अंदर अनेकों सरीसृप निवास करते हैं। कैर की लकड़ी बहुत शुभ मानी जाती है। और पुराने वक्त में घरों में दही बिलोते समय मथनी इसी के सहारे चलती थी। वह जमाना बदल गया फिर मधानी भी अनेकों प्रकार की आने लगी। आजकल के बच्चे यह भी नहीं जानते होंगे कि किसी समय दही से मक्खन बनाने की मधानी कैसे प्रयोग करते थे। कै र की लकड़ी बहुत कारगर मानी जाती है। कैर का नाम लेते ही एक ऐसे पौधे का चित्र मन में भरता है जिसके पत्ते नहीं दिखाई देते। पत्ते तो होते हैं किंतु बहुत बहुत सुई जैसे होते हैं। सुई जैसेे पत्ते वाष्पोत्सर्जन क्रिया कम करने के लिए होते हैं। कैर का तना स्वयं ही पत्ती का  कार्य करते हैं। प्राय मार्च-अप्रैल तथा अगस्त एवं सितंबर ,वर्ष में दो बार फूल एवं फल प्रदान करते हैं। कैर के फूल जो अभी खिले नहीं है उनको बाडिय़ा नाम से जाना जाता है। ये फूल खिल जाते हैं उनको भी कुछ लोग प्रयोग में लाते हैं।
  फूल से फल बनते हैं जिन्हें टींट कहते हैं जो सेहत के लिए बहुत लाभप्रद होते हैं। पेट की कई रामबाण औषधियां इसी से बनती है। वास्तव में पुराने समय में बाडिय़ां तोड़कर लाये जाते थे तोड़कर होने छाछ में डालकर कुछ दिनों के लिए रख देते है।। कुछ दिनों पर रखा देने के बाद उसे उठना बोलते हैं। छाछ में रखने से इनमें खटास आ जाता था। उन्हें साफ पानी में धोकर कई प्रकार से प्रयोग किया जाता है। विशेषकर इन की सूखी सब्जी बनाई जाती थी जो बड़े चाव से खाई जाती है। आज भी बुजुर्ग पुराने जमाने की सब्जी को नहीं भूल पाए हैं।  इसके फूल भी इसी प्रकार सब्जी बनाने के काम आते हैं। इनके फल होते हैं उनको भी ऐसे ही प्रयोग किया जाता है। जहां टींट में अंदर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं लिपिड पाए जाते हैं वही एंटीऑक्सीडेंट और एंटी डायबिटिक औषधि के रूप में जाना जाता है। शुगर की बीमारी में भी अच्छे होते हैं। मधुमेह को दूर कर देते हैं। फूलों में एस्कार्बिक अमल पाया जाता है तथा इनको ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर सब्जी बनाने के काम लेते हैं। राजस्थान जैसे क्षेत्रों में तो कैर एक बहु औषधीय पौधा बन गया है। इसके टींट जहां हरे रूप में होते हैं। बाद में वे लाल बन जाते हैं। ये पीचू नाम से जाने जाते हैं और पीचू को बड़े चाव से खाते हैं। फलों को पक्षी और पशु खाते हैं। जिनका स्वाद मीठा होता है। जिसमें काले बीज पाए जाते हैं। वास्तव में टींट को सूखा लिया जाता है जहां वे देसी सब्जियां बनाने में बहुत कारगर होते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के लोग टीट का अचार प्रयोग करते हैं। कैर की ग्रामीण क्षेत्रों के लोग पूजा भी करते हैं क्योंकि इसके औषधि गुण होते हैं। मेलों के अफसरों पर इसके पीछे कांटो में चने आदि भी पिरोए जाते हैं जो एक सगुन माना जाता है। कैर का रंग इतना गहरा और हरा होता है कि दूर से दिखाई देता है लेकिन जब इस पर फूल लगते हैं तो दूर से लोग आकर्षित करते है। कैर में सरीसृप निवास करते हैं और कैर उनका सुरक्षा भी करता है। कैर अधिक ऊंचा नहीं होता लेकिन कभी कबार इसकी लकड़ी मोटी हो जाती है तो काट कर घरों में प्रयोग करते हैं। परंतु कर जब खत्म हो जाते हैं दोबारा से पनपने में लंबा समय लेते हैं।
टींट का अचार जब कोई एक बार खा लेता है तो वह इसकी और आकर्षित होता चला जाता हैं। अचार का वो इतना दीवाना बन जाता है कि टींट के अचार के बगैर वह खाना तक नहीं खाता।
 बुजुर्ग आज भी बताते हैं पुराने समय में अधिक संघर्ष करके टींट को तोड़ कर लाते थे और थैलों में भरकर घर तक पहुंचाते थे। घरों में छाछ भी अधिक मात्रा में होने से टींट को छाछ में कुछ दिनों तक डाले रखते है। जब उनका कड़वाहट कम हो जाता है तो उन्हें तलकर या भूनकर प्रयोग करते है। आज कभी पेट में दर्द हो जाए तो इसका पिसा हुआ पाउडर लिया जाता है। टींट का प्रारंभ में रंग हरा होता है वहीं बाडिया भी हरे रंग का होता है। यदि टींट को न तोड़ा जाए तो बाद में यह लाल रंग रूप धारण कर लेता है जिसे पीचू कहते हैं तथा लोग चाव से खाते हैं। जिसका स्वाद मीठा होता है परंतु इनके बीजों को फेंक दिया जाता है। कुछ पक्षी तो बड़े अधिक लुभाते हैं और उसके फलों को खाते हैं और अपना पेट भरते हैं। टींट एवं बाडिय़ा आदि वर्तमान में पुरानी बात होती जा रही है किंतु लंबे अरसे तक अचार के रूप में टींट को आज भी प्रयोग किया जाता है। बाजार में टेंटी/टींट आदि नामों से आचार मिल जाता है जो सिद्ध करता है कि बुजुर्ग जिस फल का प्रयोग करते थे सबसे अधिक प्रयोग करते थे वह आज भी उपलब्ध है।

क्योंकि कहावत है टींट बाडिय़ा सब दिन सब दिन रांधू का अर्थ है कि टींट एवं बाडिय़ा की सब्जी तो प्रतिदिन बनती है लेकिन चावल होली जैसे पर्व  के दिन बनाऐ जाते थे। इसे सिद्ध होता कि चावल बुजुर्ग कम खाते थे ये कम मिलते थे वही टींट एवं बाडिय़ा प्रतिदिन प्रयोग करते थे। अब भी बड़े-बड़े शहरों में बाजार में कुछ गरीब जाति के लोग टींट बडिय़ा आदि बाजार में बेचते देखे जा सकते हैं। वे ढेर लगाए इनको बेेचते हैं।
 टींट खाने की आदत डाली जाएगी और बढिय़ा की सब्जी बनाई जाए तो आज भी पुराने समय का स्वाद फिर से हाजिर हो सकता है। अभी टींट पर बहुत से शोध चल रहे हैं। यह भी हो सकता है कि भविष्य में कैर बड़े स्तर पर औषधि के रूप में प्रयोग किया जाए। पुराने वक्त में सांगर, चौलाई, श्रीआई, बथुआ एवं हरी मेथी आदि अधिक प्रयोग करते थे।




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