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Friday, July 8, 2022

 
          गरीबों के आम
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दुनिया का सबसे छोटा आम
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निंबोरी
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अजारिचटा इंडिका
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दुनिया का सबसे छोटा और सस्ता आम निबोरी कहलाता है। गरीबों के लिए भी भगवान ने हर चीज खाने के लिए उपलब्ध करवाने का भरसक प्रयास किया है। जहां गर्मियों के दिनों में अमीर व्यक्ति आम का स्वाद बेहतर ढंग से ले सकता है परंतु गरीब तबके के लोग अपने क्षेत्र में और प्रकृति में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध दुनिया के सबसे छोटे आम और सबसे सस्ते आम, नीम की निंबोरी खा सकते हैं। वास्तव में नीम को गरीबों का आम कहा जाता है।
नीम की निबोरी पुराने समय से बच्चे बहुत चाव से खाते आ रहे हैं। एक वक्त था जब लोग निबोरी तोड़कर खाने के लिए लालायित रहते थे। नीम के पेड़ पर दिनभर चढ़े रहते थे और अच्छी-अच्छी निबोरी खाते थे। यहां तक कि नीम की निबोरी तोडऩे के लिए सरकंडे का एक यंत्र भी बनाते थे जिससे अच्छे दर्जे की निबोरी तोड़कर पेड़ के नीचे खड़े होकर ही खा लेते थे। वह जमाना था जब लोग पीपल की बंटी,जाटी की झींझ, कैर के पीचू ,जाल के पील तथा नीम की निंबोरी चाव से खाते थे। लंबे समय तक इनको खाया जाता था। वैसे तो आम और निंबोरी सबसे स्वादिष्ट बारिश के समय पैदा होते हैं। जब बारिश होती है तो निबोरी पक जाती है वही आम भी पक जाते हैं। वैसे तो नीम को घर का वैद्य कहा गया है। इससे अनेकों दवाइयां प्राप्त होती है जिनका इंसान लंबे समय से प्रयोग करता रहा है। परंतु आज भी इन निंबोरी की तरफ कुछ लोगों का आकर्षण देखने को मिलता है। यह सत्य है कि इन चीजों को लोग आधुनिक युग में भुलाते जा रहे हैं। यही कारण है कि नीम के प्रति उनका व्यवहार भी बदल गया है। नीम सबसे अधिक औषधियों में प्रयोग होने वाला ग्रामीण क्षेत्रों का एक पेड़ होता है।
 हर घर दरवाजे तथा संस्थान एवं खेतों में नीम खड़ा देखा जा सकता है। इसे अजारिचटाइंडिका होली ट्री, इंडियन लीलाक, मेलिया अजारिचटा,नीम, निंबा आदि नामों से जाना जाता है। पुराने समय से जब मोटे अन्न घरों में सुरक्षित रखते थे तो इसके पत्ते ही काम में लाए जाते थे। नीम की दातुन सैकड़ों वर्षों से आज तक इंसान करता आ रहा है। नीम की कच्ची कोपल भी विभिन्न रोगों को दूर करने के लिए लोग प्रयोग करते आ रहे हैं। ऐसे में नीम को किसी भी सूरत में भुला नहीं सकते परंतु नीम एक बड़ा पेड़ होता है जिसके पत्ते, बीज एवं छिलका दवाओं में काम आता है। इसकी जड़, फूल और फल भी अक्सर काम में लाए जाते हैं।
  नीम के पत्तों का उपयोग कुष्ठ रोग, नेत्र रोग, आंतों के कीड़े, पेट खराब होने पर, भूख न लगना, त्वचा के अल्सर, हृदय रक्त वाहिनियों के रोग, बुखार, मधुमेह, मसूड़ों की बीमारी, यकृत आदि अनेक दवाओं में काम में लाया जाता है वही पत्ती का उपयोग जन्म नियंत्रण और गर्भपात के लिए भी किया जाता रहा है।
 नीम की छाल का उपयोग मलेरिया, त्वचा रोग, दर्द, बुखार आदि में किया जाता है। पुराने समय से पत्तों और छाल आदि को उबालकर स्नान करवाने के काम में लाते थे ताकि रोगाणुरहित शरीर बन जाए। फूल का उपयोग पित्त कफ का नियंत्रण, आंतों के कीड़ों के इलाज में काम में लेते हैं किंतु फल का उपयोग बवासीर आंतों के कीड़े, मूत्र विकार, खूनी नाक, नेत्र विकार, मधुमेह,कुष्ठ रोग घाव के इलाज के काम में लेते हैं।

 नीम की कच्ची कोपलों का उपयोग खांसी, दमा, बवासीर, आंतों के कीड़े, मूत्र विकार, मधुमेह शुक्राणु संबंधित बीमारियों के इलाज में काम लेते हैं। टूथब्रश के रूप में तो बहुत से लोग प्रयोग करते हैं। नीम की टहनियों को कच्ची टहनियों को जब खाते हैं तो सावधानी से खाना चाहिए।
 बीज और बीज का तेल उपयोग कुष्ठ रोग और आंतों के कीड़े जान नियंत्रण, गर्भपात आदि में किया जाता है। जड़ ,छाल एवं फल कैा तेल सिर की जू, त्वचा रोग, घाव आदि के इलाज में भी इसका उपयोग किया जाता है। मच्छर से बचने की क्रीम के रूप में और साबुन आदि में रूप में भी किया जाता है। 

  ऐसे में नीम एक बहुत गुणकारी पौधा है जिसका हर भाग किसी ने किसी काम में और उपयोग में लेते हैं। नीम के पत्तों का प्रयोग  लगातार 6 सप्ताह प्रयोग करने से जीवाणुओं की संख्या घट जाती है।  शोध भी हो चुका है कि जड़ एवं पत्ती कीटों को दूर भगाते हैं। अल्सर आदि में काम आते हैं। सोरायसिस, पेट की खराबी, सांस न लेने की स्थिति में, मलेरिया, कीड़े ,सिर की जूं त्वचा रोग दिल की बीमारी, मधुमेह आदि में भी काम में लाया जाता है।
नीम को अधिक मात्रा में या लंबे समय तक रहने से गुर्दे और लीवर को नुकसान हो सकता है। नीम की निंबोरी वास्तव में बहुत मधुर लगती है जो आने को बीमारियों की ठीक करने में लाभप्रद है। शरीर में क्षार की मात्रा को बढ़ा देती है जिससे एसिडिटी संबंधित विकार कम हो जाते हैं।  यह देखने में आम जैसे लगते हैं इसलिए नीम की निंबोरी को गरीबों का आम कहा जाता है। वैसे भी दुनिया के सबसे छोटे आम है तथा आसानी से ग्रामीण क्षेत्रों में मुफ्त में उपलब्ध हो जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में नीम कम होने से इनकी सुलभता स्वाभाविक है।






आज भी बुजुर्गों को गरीबों के आम खाने के दिन याद आते हैं।

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