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Sunday, June 14, 2020




चौलाई
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अमरेंथस विर्डिज
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राजगिरी/रामदाना 

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 चौलाई एक बेहतर साग होता है। वास्तव









 में यह चौलाई एक शाक के रूप में मिलती है। इसे अंग्रेजी में अमारंथूस कहते हैं। यह पूरे संसार में पाई जाती है। इसकी अब तक करीब 60 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है।
 जहां छोटे पत्तों की, कांटो वाली, बड़े पत्तों की, बैंगनी फूलों वाली, लाल फूल वाली कई रंगों में मिलती है। गर्मी और बरसात के मौसम में चौलाई हरी सब्जी के रूप में काम में लाई जाती है। आमतौर पर साग और पत्तेदार सब्जियां बनाने के काम में लाया जाता है।
इस पौधे को गर्मी तथा वर्षा दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है। चौलाई का सेवन जहां भाजी के रूप में किया जाता है जो विटामिन-सी से लबालब होती है। इनमें अनेकों औषधीय गुण पाए जाते हैं।
 आयुर्वेद के अनुसार शरीर के कई रोगों में लाभकारी है। लाल चौलाई में जहां सोना धातु के कण पाए जाते है जो अन्य साग सब्जी हो नहीं पाया जाता। चौलाई के सभी भाग अर्थात जड़, तना, फूल, पत्ते, फल काम में लाए जाते हैं।
 उनकी पत्तियों में जहां प्रोटीन विटामिन-ए, सी तथा खनिज लवण पाए जाते हैं।
 लाल चौलाई खून की कमी को दूर करती है। पेट के रोगों बहुत लाभप्रद है। इसमें रेशे पाए जाते हैं आंतों से चिपके हुए मला को बाहर निकालने में मदद करते हैं तथा कब्ज को दूर कर देते हैं।
 इसके उपयोग से पाचन संस्थान को शक्ति मिलती है। जब छोटे बच्चों में कब्ज हो जाती है तो चौलाई के पत्तों का रस दिया जाता है। जन्म के बाद दूध पिलाने वाली माताओं के लिए बहुत उपयोगी है। इसकी जड़ पीसकर मांड एवं शहद में मिलाकर पीने से श्वेत प्रदर रोग ठीक होते हैं। इसलिए महिलाओं के लिए यह रामबाण औषधी है। यह भी माना जाता है कि जिन महिलाओं में बार बार गर्भपात होता है उनको इसका उपयोग करना चाहिए।
 अनेकों प्रकार के विष जैसे चूहे, बिच्छू आदि का चौलाई द्वारा दूर किया जा सकता है। चौलाई का नित्य सेवन करने से अनेक विकार दूर होते हैं। जहां छोटी पत्ते की चौड़ाई, बड़ी पत्ते की चौलाई, लाल चौलाई, मोरपंखी अनेकों प्रकार प्रजातियां मिलती हैं। यहां तक कि जंगलों में मिलने वाली कांटेदार चौलाई बहुत भारी मात्रा में फैलती है।

हर प्रकार की चौलाई कुछ काम आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली चौलाई जिसे अमारंथूस विरिडिज नाम से जाना जाता है जिसके पत्ते पकाकर खाए जाते हैं जो पाचन तंत्र की कमियों को दूर करते हैं। अमारंथूस स्पाइनोसस एक चौलाई का प्रकार है जिसे कंटीली चौलाई कहते हैं। जो लीवर, मूत्र तंत्र में विकारों को दूर करने के काम आती है वही घाव को भरने, जले हुए की जलन दूर करने के काम आती है।
जोड़ों में दर्द सूजन आता है उन पर भी इसका लेप किया जाता है। खांसी, दमा दूर करने के लिए इसकी कलियां काम में लाई जाती है। इस पौधे के जड़ों पर छाल को
पीसकर मलेरिया रोग में काम में लाया जाता है। यहां तक कि इसके पत्ते सरसों के तेल में गर्म करके घाव एवं चोट के दर्द आदि को दूर करने के लिए काम में लाया जाता है।
चौलाई की खेती भी की जाती है और किसान भी इसको उगा कर बाजार में बेचकर मुनाफा कमाते हैं।
 चुौलाई को कच्चे रूप में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें आक्जलेट और नाइट्रेट पाए जाते हैं जिन्हें उबालकर ही दूर किया जा सकता है। चौलाई में विटामिन और खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। चौलाई जहां आंखों की रोशनी बढ़ाती हैं वही चौलाई हड्डियों को मजबूत करने, बालों के लिए लाभप्रद, वजन
कम करने, मधुमेह और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। सूजन में भी चौलाई काम आती है। कोलेस्ट्रोल कम करती है, रक्ताल्पता की बीमारी को तुरंत दूर करती है। यही नहीं चौलाई के अनेकों लाभ है लेकिन शरीर में कुछ नुकसान भी करती है खासकर छोटे बच्चे चौलाई में पाए जाने वाले प्रोटीन को सहन नहीं कर सकते इसलिए पेट दर्द का कारण बनते हैं। इसी प्रकार कैल्शियम अवशोषण को भी बढ़ाता है यह पशु रोगों में भी उतनी ही कारगर है जितनी इंसानों में। पशुओं के रोग विशेषकर कब्ज, शारीरिक विकारों में लाभप्रद है।
ग्रामीण क्षेत्रों में इससे खाटा का साग,कढ़ी तथा विभिन्न सब्जियों में प्रयोग में लाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध साग बनता है। यहां तक कि इनको भाजी बनाने के काम में भी लेते हैं। श्वास संबंधी समस्या, पाचन तंत्र संबंधी समस्या भी यह लाभप्रद है। जन को इसका उपयोग जरूर करना चाहिए।

   चौलाई को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के पौधों को खा लेते हैं। वास्तव में जंगली चौलाई, चौलावा, हरी पत्तेदार कोहेंद्रा आदि को भी लोग चौलाई समझ कर खा लेते हैं इनमें अंतर नहीं जानते। यद्यपि उनके खाने से कोई नुकसान नहीं हो सकता किंतु चौलाई का ज्ञान हो तो ज्यादा बेहतर होगा। बाजार में चौलाई के बीज मिलते हैं जो वास्तव में बड़े पत्तों की चौलाई की एक प्रकार है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां चौलावा बारिश के बाद स्वयं उग जाता है उन्हें भी लोग चौलाई के रूप में प्रयोग करते हैं।
 एक बार मैं एक बड़े शहर में चला गया जहां कुछ दिन रुकना था। मेरे परिचित ने मुझसे कहा-आज आपको चौलाई का साग खिलाते हैं। मुझे खुशी हुई कि चलो जीवन भर चौलाई खाई है किंतु शहर की चौलाई भी कभी खाकर देखे। बड़ा आश्चर्य हुआ जब उन्होंने मुझे चौलाई दिखाई। ग्रामीण लोग पशुओं को चराते हैं जिसे कांटेदार चौलाई/जंगली चौलाई कहते हैं उसे ही चाव से खाने को मजबूर हैं।
 चौलाई एक छोटे पत्तों वाला पौधा है जो जबकि कांटेदार चौलाई अर्थात चौलावा बड़े पत्तों वाला एक पौधा होता है। दोनों के बीच की एक और प्रकार बाजार में बीज के रूप में उपलब्ध होती है जिसे शहरी लोग बड़े चाव से खाते हैं। चौलाई भारत के हरियाणा क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में मिलती है। चौलई केवल बरसात के मौसम में ही उगती है और अपने आप बढ़ोतरी कर जाती है। यहां तक कि कई बार बहुत अधिक मात्रा में किसी जगह चौलाई खड़ी देखी जा सकती है। चौलाई हर रूप में लाभप्रद है। लोग इसे देसी सब्जी जैसे खाटा का साग एवं कढ़ी आदि में डालते हैं वहीं कुछ लोग इससे भाजी भी बनाकर खाते हैं। पराठे बनाकर खाने में भी लुत्फ उठाते हैं वही चौलाई को विभिन्न रूपों में प्रयोग करके खुशी का एहसास होता है। यद्यपि आधुनिक सभ्यता चौलाई से दूर भागती है किंतु सेहत की दृष्टि से चौलाई बहुत अधिक लाभप्रद है। एनीमिया की शिकार, खून की कमी, किसी काम में रुचि न होना, चेहरा पीला पडऩा सभी एनीमिया जैसे लक्षण हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को अधिक से अधिक हरी पत्तेदार सब्जियां जिन में चौलाई आदि शामिल हो खिलानी चाहिए जिससे लोग आसानी से दूर हो सकता है। जिससे कामों में रुचि बढ़ेगी।
चौलाई ग्रामीण क्षेत्रों के लोग तो बहुत समय से प्रयोग करते आ रहे हैं। बारिश होती है तो जंगलों में अपने आप उग जाती है। अब जब जंगल ही समाप्त हो गए इसलिए चौलाई अपने आप ही समाप्त होती जा रही है। चौलाई वास्तव में एक हरी पत्तेदार सब्जी है और इसका प्रयोग जरूर करने का प्रयास करना चाहिए।

 





***होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा***

                          चौलाई
खेत की एक खरपतवार
बारिश में पैदा हो हजार
अमरंथस नाम से जानते
बीमारों को इससे प्यार,
                          प्राचीन समय से पैदा हो
                          जंगल में पैदा हो आप
                        रामदाना इसे कहते सभी
                        प्रोटीन का अच्छा आधार,
गेहूं से जब होती एलर्जी
उस वक्त चौलाई रामबाण
सब्जी बेहतर हरा रंग है
कई रोगों में बचाए प्राण,
                             विटामिन ए, सी मिलता
                            कैल्शियम लोहा भरा है
                             खून शुद्ध कर देती जन
                             रंग इसका गहरा हरा है,
कढ़ी, दाल व खाटा साग
मिलकर स्वाद बढ़ाते हैं
खून के हानिकारक तत्व
चौलाई खाकर हटाते हैं,
                            शरीर की इमून कम होती
                           बदहजमी अगर सताती है
                           मूत्र विकार से हो परेशानी
                           चौलाई जड़ से मिटाती है,
घट रही खेतों से अब यह
नहीं मिलती इसकी बहार
चौलाई का हर भाग दवा
रोग दूर कर दे कई हजार,
                            बारिश में जब होती यह
                           कुछ दिनों तक चलती है
                           कवियों की कविताओं में
                          


मन ही मन को लुभाती है।
******होशियार सिंह, लेखक, कनीना***




           चौलावा
     (अमरंथस स्पाइनोसस)

चौलाई से मिलता जुलता  

खेतों में उगता एक शाक
                         अमेरिका से फैल गया है
                        तेजी से फैल जमाता धाक,

स्पाइनी, प्रिकी व थोरनी
अमरंथस इसके ही नाम

                   चावल में बन खरपतवार
                    उनको कर देता है बेदाम,

पिग विड परिवार का है
भोजन के रूप में खाते हैं

                    18 प्रकार के अमल मिले
                    शरीर को रोग से बचाते हैं,

हरे रंग की डाई बनती है
टूटी हड्डी में काम आता

                  आंतरिक घाव भर देता है
                  हैजा रोग से इंसान बचाता
,
जड़ इसकी माहवार बढ़ाए
महिला ब्रेस्ट में दूध बढाता

                गनोरिया, त्वचा के रोग हो
                 कई बीमारियों को घटाता,

जड़, बीज, तना और पत्ते
कितने ही रोगों में काम के

               मूत्र विकार,पेट की बीमारी
               इसके आगे लगते नाम के,

गर्भपात को प्रेरित करता है
बुखार, कैंसर, पेट अलसर

                     पेट की कई बीमारी हो जा
                  अमरंथस उनको लेता है हर,

कितने ही  रोगों को  दूर करे
अपार मात्रा में मिलता तैयार

                    तोड़कर ले आओ घर में तो
                   बढ़ जाएगा परिवार में प्यार,

पशु पक्षी इसको खा जाते
फिर भी हजारों फूल खिले

                      कांटेदार फल, बीज आते हैं
                     बंजर भूमि पर खड़ा मिले।।

              ***होशियार सिंह, लेखक, कनीना
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