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Wednesday, June 4, 2014

श्रीआई


             श्रीआई
           सिल्वर कोकसकोंब



            (सेलोसिया अर्जेंटी)
किसान के खेतों में कभी
उगती है कुछ खरपतवार

                  सब्जियों में काम आती हैं
                   प्रयोग करो व्रत या त्योहार,

बाथू, चौलाई और श्रीआई
किसान ने कभी नहीं बचाई

                     धीरे-धीेरे ये  लुप्त हो  रही हैं
                    तरसेंगे फिर इन्हें लोग लुगाई,

हरे भरे पत्तों से युक्त सब्जी
खरीफ फसल में मिलती है

                     सफेद भुट्टे सा फूल खिलता
                      मदमस्त बाजरे में हिलती हैं,

गजब की सब्जी व साग बने
किसान के घर में खाया जाए

                  जब किसान खेतों से घर लौटे
                   तोड़  श्रीआई  घर को ले लाए,

खून की कमी को करती पूरा
काट पीट इसकी भाजी बनाए

                    रायता दही में जब बन जाता है
                    अंगुली को चाट-चाटकर खाए,

कितने ही खनिज लवण मिलते
कितनी इससे मिलती विटामिन

                      मुफ्त की गुणकारी मिले सब्जी
                     जन की उम्र बढ़ जाए दिनोंदिन,

भूल गए क्यों ग्रामीण सब्जी को
कहां गए वो लोग इसे खाने वाले

                        आजकल की जहरीली सब्जी से
                         रोग बढ़ते जा रहे लाइलाज वाले,

कब जागेगा इंसान धरा वाला
कब तक यूं ही करेगा संहार

                          धरती मां ने जग ऋण उतारा
                          जग का धरा पर ऋण उधार।

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

श्रीआई
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 सिल्वर कोक्सकोंब
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सेलोसिया अर्जेटी
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श्रीआई एक शाक का नाम है जो सिल्वर कोक्सकोंब नाम से जाना जाता है। वास्तव में इस का वैज्ञानिक नाम सेलोसिया अर्जेटी है। यह किसी समय हरियाणा भारत के हरियाणा राज्य में बहुत अधिक होता था। अब धीरे.धीरे समाप्त होता जा रहा है। किसानों ने अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार लेनी चाही। परिणाम स्वरूप उसने दवाओं का छिड़काव किया, भारी मात्रा में उर्वरक डालें जिसके चलते श्रीआई पूर्णता लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। यह खरीफ फसल बतौर बाजरा, ग्वार, कपास आदि में भारी मात्रा में होती थी। इसकी बड़ी खूबी थी, गहरा हरे रंग का होती थी। पत्ते लंबे चौड़े होते थे तना इसका हरा होता था। तथा इस पर सफेद रंग के फूलों का गुच्छा आता था जिसमें काले रंग के गोल बीज निकलते थे। जो बहुत सुंदर लगते थे। लेकिन इस पौधे को देखकर लगता था कि वास्तव में यह बहुत स्वादिष्ट होगा क्योंकि इसका गहरा रंग मन को आकर्षित कर लेता था। खेतों में खरपतवार के रूप में पाया जाने वाला यह शाक पूर्णता समाप्त हो गया है।
श्रीआई सब्जी के काम आती है। जब कभी तीज त्योहार एवं व्रत के समय इसका प्रयोग करते करते थे। विभिन्न प्रकार की सब्जियां इससे बनाई जाती थी यहां तक कि खाटा का साग, भाजी बहुत महत्वपूर्ण होते थे, बहुत स्वादिष्ट बनते थे। इस के पराठे तो मानो बहुत अधिक रोचक लगते थे जिनके में खून की कमी होती थी वह कुछ ही दिनों में दूर हो जाती थी। इसके हरे भरे पत्तों में बहुत अधिक लोहा पाया जाता है। इसकी गजब की साग सब्जी बनती थी। बुजुर्ग आज भी इसको नहीं भुला पाये हैं क्योंकि खेतों की शान होती थी।
किसान बेशक अच्छी पैदावार ले रहे हो लेकिन इस शाक को नहीं भुला पाए हैं। दही में रायता बनाकर खाते थे तो उंगलियों को चाटते ही रह जाते थे। बहुत अधिक खनिज लवणों से भरपूर होती थी। यह उम्र बढ़ाने में सहायक थी। आज इसको खाने वाले तो दूर युवा पीढ़ी पहचानती भी नहीं। अगर लाकर रख दिया भी जाए तो युवा पीढ़ी इसे दूर फेंक देगी। यही कारण है कि लोग विशेषकर खून की कमी से रोग बढ़ते जा रहे हैं। यह एक ऐसा पौधा था जो पेट की विभिन्न बीमारियों को दूर करने के काम में लाया जाता था। पेट की जो भी बीमारी होती थी उन सभी में यह औषधि के रूप में काम में लाया जाता था और लोग इसे बहुत पसंद करते थे। आज बस इस पौधे की यादें रह गई हैं। आज अगर चाहे तो बारिश के बाद इक्का.दुक्का पौधा कहीं मिल सकता है। बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में बहुत अधिक फलता फूलता था किंतु अब यह समाप्ति की ओर जा रहा है। यदि किसी में गुर्दे की अमाशय की या आंतों की समस्या होती थी इस पौधे को याद करते थे। इस पौधे जहां चेहरा लाल पड़ जाता था वहीं कार्यों में रूचि बढ़ जाती थी। इससे इंसान बहुत खुश रहता था।

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